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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। छोड़ दिया, जिससे उसका सिर कटकर गिर पड़ा। वासुदेवके हाथों प्रतिवासुदेवका मरण होनाही इस संसारकी रीति है। सुदर्शन नामका वह चक्र-रत्नअश्वग्रीवका मस्तक छेदन कर त्रिपृष्ट पास लौट आया। उसी समय देवताओंने आकाशले त्रिपृष्ठके मस्तक पर फूलोंकी वर्षा की और कहा,-"यह त्रिपृष्ठ आजसे इस भरतक्षेत्रका वासुदेव कहलायेगा।” इसके बाद त्रिपृष्ठ वासुदेवने दक्षिण भारतके तीन खण्डोंको जीतकर उनमें अपनी हुकूमत चलायी और बायें हाथसे कोटि. शिला उत्पाटन कर छत्रकी तरह मस्तकपर धारण करके ही छोड़ा। इसके अनन्तर विद्याधरों और नरेन्द्रोंने उसे वासुदेव मानकर उसका पट्टाभिषेक किया। वासुदेवने ज्वलनजटीको विद्याधरोंका अधिपति बना दिया। त्रिपृष्ठकी आज्ञासे विद्युत्प्रभाकी बहन ज्योतिर्माला अर्ककीर्ति कुमारका व्याही गयी। इसके बाद तीन खण्डोंके स्वामीके रूपमें त्रिपृष्ठने अपने नगरमें प्रवेश किया। उसके सोलह सहस्र रानियाँ हुईं, जिनमें स्वयंप्रभा ही मुख्य पटरानी और राजाकी अत्यन्त प्यारी बनी रही। ____ इधर श्रीषेण राजाका जीव सौधर्म नामक देवलोकसे च्युत होकर अर्ककीर्ति राजाकी रानी ज्योतिर्मालाके गर्भरूपी सरोवरमें उत्पन्न हुआ। उस समय माताने स्वप्नमें अत्यन्त तेजस्वी सूर्यको देखा। समय पूरा होने पर रानीके पुत्र उत्पन्न हुआ। पिताने बड़ी धूमधामसे उत्सव मनाया और पुत्र का नाम अमिततेज रखा। वह क्रमसे बड़ा होने लगा। एक दिन अर्ककीर्तिके पिता ज्वलनजटीने अभिनन्दन नामक मुनिसे दीक्षा ले ली। इसके बाद सत्यभामाका जीव भी सौधर्म नामक देवलोकसे व्युत होकर उसी राजा अर्ककीर्त्तिकी रानी ज्योतिर्मालाकी कोखमें पुत्रीके रूपमें अवतीर्ण हुआ। उस समय उसकी माताने स्वप्नमें ताराओंसे शोभित रात्रि देखी। क्रमसे काल पूरा होनेपर उसे पुत्री पैदा हुई। स्वप्नके. ही अनुसार उसका नाम सुतारा रखा गया। धीरे-धीरे वह बालिका युवावस्थाको प्राप्त हुई। अभिनन्दिताका जीव स्वगेसे च्युत Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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