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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / अपने मनमें विचार किया,-"जब यह इतना बलवान है, तब तो मेरे साथ युद्ध भी कर सकता है।" ऐसा विचार कर वह मौन रह गया। एक समयकी बात है, कि अश्वाग्रीव राजाने राजकुमारी स्वयंप्रभाकी सुन्दरताका वृत्तान्त सुनकर ज्वलनजटीसे उसकी याचना की। यह सुन, ज्वलनजटोने दूतके मुँहसे उसे कुछ उत्तर कहला भेजा और उसे शांत कर दिया। इधर गुप्त रीतिसे अपनी कन्याको पोतनपुर ले जाकर उसने ज्योतिषीके कहे अनुसार राजकुमार त्रिपृष्ठके साथ अपनी कन्याका विवाह कर दिया। कुछ दिन बाद हरिश्मश्रु नामक मन्त्रीने किसीसे स्वयंप्रभाका विवाह हो जानेकी बात सुनकर अपने मालिक राजा अश्वग्रीवसे यह बात कह सुनायी। इसपर अत्यन्त क्रुद्ध होकर उसने हुक्म दिया,-"मन्त्री तुम अभी त्रिपृष्ठ, अचल और मायावी ज्वलनजटीको बाँधकर मेरे पास ले आओ।" सचिषने अश्वग्रीवके हुक्मकी तामिल करनेके लिये उधरको दूत रवाना किया। उस दूतने पोतनपुर जाकर गर्विष्ट वचनोंसे ज्वलनजटोसे कहा,-" अरे मूर्ख ! तू मेरे स्वामीको अपनी कन्यारत्न दे डाल / क्या तू नहीं जानता, कि मेरे स्वामी सब प्रकारके रत्नोंके आधार हैं ? कहा भी है, कि- . "मणिमेदिनी चन्दनं दिव्यहेति-वरं वामनेत्रा गजो वाजिराजः / .. विनाभूभुजं भोगसम्पत्समर्थ, गृहे युज्यते नैव चान्यस्य पुंसः॥ 1 // ... अर्थात्-'मणि, पृथ्वी, चन्दन, दिव्यशस्त्र, मनोहर स्त्री, उत्तम गज और श्रेष्ठ अश्व आदि उत्तम पदार्थ भोगकी सम्पत्तियोंसे भरे हुए राजाके सिवा और किसीके घरमें शोभा नहीं पाते // " .. .. . : यह कह, जब वह दूत चुप हो गया, तब ज्वलनजटीने कहा,- “हे दूत! मैं तो अपनी लड़कीका विवाह त्रिपृष्ठके साथ कर चुका / इसलिये अब तो वही उसका मालिक है / मेरा उसपरसे अधिकार आता रहा। :- यह सुन, वह दूत त्रिपृष्ठके पास चला गया। वहाँ त्रिपृष्ठने उससे कहा, "हे दूत ! मैंने इस कन्याके साथ विवाह किया है। अब यदि . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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