________________ 28 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। द्वारा देखती है ; ब्राह्मण वेदोंके द्वारा देखते हैं और अन्य मनुष्य आँखोंसे देखते हैं।" इसके बाद दूत भी वहाँ आ पहुँचा। राजाधिराजको तो मेरा सारा हाल पहलेही मालूम हो गया होगा, यही सोचकर उस दूतने उनसे सारी बातें सच-सच कह डालीं। इसके बाद बोला,-" हे महा. राज! यह तो उन बालकोंकी चपलता मात्र थी ; परन्तु प्रजापति राजाने तो आपकी आज्ञाका बाल बराबर भी उलंघन नहीं किया ; इस लिये . आपको उनपर क्रोध नहीं करना चाहिये। यह सुन, राजेन्द्रने मौन धारण कर लिया। राजाके शालिके वहुतसे क्षेत्र थे ; परन्तु उनमें सिंहका उपद्रव भी बहुत हुआ करता था। इसीलिथे प्रत्येक वर्ष कोई न कोई राजा उसकी आशाके अनुसार वहाँ आकर उन क्षेत्रोंकी रक्षा किया करता था। इस वर्ष प्रजापति राजकी बारी न होनेपर भी अश्वग्रीव राजाने उसके पास दूत भेजकर उसीको क्षेत्र-रक्षाका भार दिया। यह सुन, प्रजापति राजा चिन्तामें पड़ गये और मन-ही-मन विचार करने लगे। इसी समय उस कठिन आज्ञाकी बात सुन, त्रिपृष्ठ और अचलने पिताके पास आकर कहा, "हे स्वामिन् ! आप चिन्ता न करें। आपका यह काम हमलोग करेंगे। * आप निश्चिन्त रहें।" .. - यह कह, वे दोनों बलवान् राजकुमार शालि-क्षेत्रमें जा पहुंचे। वहाँके रक्षकोंको उन्हें देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा,-"सब राजा लोग इन शालिक्षेत्रोंकी रखवाली करनेके लिये अपने सैनिकों और वाहनोंके साथ आते और चारों ओरसे उनका पहरा बैठा देते हैं, तब कहीं रक्षा हो पाती है। परन्तु तुम लोग तो बड़ेही विचित्र रक्षक मालूम पड़ते हो ; क्योंकि न तो तुम्हारे शरीर ही बस्तरसे ढके हुए हैं, और न तुम अपने साथ सैन्य-परिवारही लाये हो।' . यह सुनतेही त्रिपृष्ठने कहा,- भाइयों! पहले तुम लोग हमें उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust