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________________ द्वितीय प्रस्ताव / दोनों पुत्र बड़े ही बलवान और उद्धत हैं। यह सुनकर उसने अपने चण्डवेग नामक दूतको राजा प्रजापतिकी सभामें भेजा। जिस समय राजा प्रजापतिकी सभामें नाट्य और सङ्गीत हो रहे थे, उसी समय यह दूत वहाँ आ पहुंचा। इससे सभामें बैठे हुए सभी लोग बड़े व्याकुल हो गये। इस प्रकार नाटकके रङमें भङ्ग पड़ते देख, त्रिपृष्ठ और अचल नामक दोनों राजकुमारोंको बड़ा क्रोध उत्पन्न हुआ; परन्तु उस समय वे उस क्रोधको पी गये और मन-ही-मन समझ-बूझकर चुप हो रहे। ____ इसके बाद राजा प्रजापतिने प्रतिवासुदेवके दूतका आदर किया और उसकी बातें सुन, उसे विदा किया। वह घर लौट चला। इसी समय राजकुमारोंके सेवकोंने उनके पास आकर कहा,-"राजासे आदर-मान पाकर वह दूत नगरकी ओर चला जा रहा है।" यह सुन, दोनों राजकुमार उसके पीछे चले और उसके पास पहुँच, उसे इस बातकी याद दिलाकर, कि तूने हमारे रङ्गमें भङ्ग डाल दिया है, उसकी लातघूसोंसे खूब मरम्मत की / अपने पुत्रोंकी इस काररवाईका समाचार पाकर प्रजापति राजाने झटपट उस दूतके पास आकर उससे माफ़ी मांगी और पुन: उसे वस्त्र इत्यादि देकर सम्मानित किया, जिससे वह सन्तुष्ट हो गया। कहा भी है, कि को न याति वशं लोके, मुखे पिण्डेन पूरितः / __ मृदङ्गो मुखलेपेन, करोति मधुरध्वनिम् // 1 // ... ..... .:: : अर्थात् मुंहमें पिंड भर देने पर, कौन वशमें नहीं हो जाता ? देखो, मदंगके मुँहपर आटा लगा देनेसे, वह भी मधुर ध्वनि सुनाने लगता है ., . . ... ........... ..', इधर प्रतिवासुदेवके चरोंने उसे चण्डवेगके पराभवकी बात पहले ही आकर सुना दी। कहा भी है, कि- .... . .. ... चरैः पश्यन्ति राजानो, धनुर्गन्धेन पश्यति / " . . . . . पश्यन्ति वाडवा वेदै-श्वनामितरे जनाः // 1 // . ..... ...अर्थात् राजा लोग चरोंके द्वारा देखा करते हैं ; गाय गंधके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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