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________________ inmmmm ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~~ ~ VAAA प्रथम प्रस्ताव / इसमें सन्देह नहीं, कि तेरे ही अंगोंके स्पर्शसे, तेरा स्वामी कोढ़ी हो गया है / तू बड़ी पापिनी है / जा, तू मेरी आँखोंके सामनेसे दूर हो जा-मुझे अपना मुँह मत दिखा | अपनी सखीके ऐसे वचन सुन, भद्राके मनमें बड़ा भारी खेद हुआ-क्षण भरके लिये उसके चेहरे पर स्याही दौड़ गयी / कुछ ही क्षण बाद श्रीदेवीने कह,– “सखी ! बुरा न मानना / मैंने यह बात दिल्लगीसे कही है।" यह सुन, भद्राके मनका खेद दूर हो गया। . सोमचंद्रने मुनियोंके संगके प्रभावसे, अपनी भार्याके साथ ही जैन-धर्म अंगीकार कर, उसका शृद्ध रीतिसे पालन करते हुए, अंतमें समाधि-मरणसे मृत्यु पायी और सौधर्म नामक पहले देवलोकमें जाकर, पाँच पल्योपम आयुष्यवाला देव हो गया। हे राजन् ! उसी सोमचंद्रका जीव देवलोकसे आकर, मंगलकलश हुआ और श्रीदेवीका जीव भी वहींसे पाकर, त्रैलोक्यसुंदरी हुई / तुमने सोमचंद्रके भवमें दूसरेके दिये हुए द्रव्यसे पुण्य कमाया था, इसीलिये तुमने इस जन्ममें दूसरेके नाम पर इस राजकन्यासे विवाह किया और त्रैलोक्यसुंदरीने श्रीदेवीके भवमें हँसीसे अपनी सखीको कलंक लगाया था, इसीलिये इस भवमें इसे भी कलंक लगा।" : इस प्रकार गुरु महाराजके मुखसे अपने पूर्व जन्मका वृत्तान्त सुन, राजा और रानीको वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने अपने पुत्रको राज्यका भार सौंप, गुरुसे दीक्षा ग्रहण कर ली। इसके बाद वे राजर्षि क्रमशः सभी सिद्धान्तोंके पारगामी विद्वान हो गये। गुरुने उन्हें प्राचार्यके पद पर स्थापित किया और त्रैलोक्यसुंदरीको प्रवर्तिनीके पद पर बैठाया। काल पाकर वे दोनों ही शुभ ध्यान करते हुए काल-धर्मको प्राप्त हुए और ब्रह्मदेव-लोक नामक पाँचवें स्वर्गमें देव होकर जा विराजे। वहाँ से पुनः आकर मनुष्य-जन्मके तीसरे भवमें उन दोनोंने मोक्ष-पदवी पायी।" मङ्गलकलश कथा समाप्त। इस प्रकार धर्म-कथाका श्रवण कर, श्रीपेण राजाको प्रतियोध हुश्रा। उन्होंने गुरुसे समकित पूर्वक श्रावक-धर्म ग्रहण किया। इसके बाद सूरि कहीं और विहार कर गये। श्रीषेण राजा अपने राज्य और जैनधर्मका पालम बड़े यत्न से करने लगे। राजाके ही उपदेशसे उनकी अभिनन्दिता नामक रानीने खासकर वह धर्म अंगीकार कर लिया और दूसरी रानीने भी सुख सौभाग्य प्राप्त किया / ___एक समयकी बात है, कि कौशाम्बीके राजा बलभूपने अपनी रानी श्रीमतीके गर्भसे उत्पन्न श्रीकान्ता नामक अपनी पुत्रीका विवाह श्रीषेण राजाके पुत्र इंदुषेणके साथ करनेके विचारसे स्वयंवराके तौर पर वहाँ भेज दिया। उससमय P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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