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________________ 20 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कलशने अपने पुण्यके प्रभावसे, उन सबको युद्ध-भूमिमें बड़ी आसानीसे परास्त कर डाला। तब तो उसके सभी शत्रु मित्र हो गये। वह सुखसे राज्यका शासन-पालन करने लगा / काल-क्रमसे त्रैलोक्य सुन्दरीके पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम यशःशेखर रखा गया। पुत्र-जन्मकी बधाईमें मंगलकलश राजाने अपने देश में सर्वत्र जैनचैत्योंमें जिन-पूजा करायी और 'अमारीपडह' तथा 'रथयात्रा, आदि धर्म-कार्य करवाये / / एक दिन उस नगरके उद्यानमें श्रीजयसिंह सूरि पधारे। यह सुन, मंगलकलश राजा अपनी रानीके साथ भक्ति-भाव-पूर्वक गुरुकी वन्दना करने गया / उसने गुरुकी तीन बार प्रदक्षिणा कर, उनकी भक्ति-पूर्वक वन्दना करते हुए पूछा,"हे भगवन् ! कृपा कर यह बतलाइये कि मेरे विवाहके समय मुझे इतनी विडम्बनामें क्यों पड़ना पड़ा और मेरी रानीके सिर कलंकका टीका क्यों लगा ? यह हमारे किंस कर्मके दोषसे हुआ ?" सूरिने कहा, "इस भरत-क्षेत्रमें क्षितिप्रतिष्ठ नामक एक नगर है / उसमें सोमचन्द्र नामका एक कुलपुत्र रहता था। उसकी स्त्रीका नाम श्रीदेवी था। दोनोंमें परस्पर बड़ी प्रीति थी। सोमचंद्र स्वभावसे ही सद्गुणी, सरल-हृदय और सब लोगोंमें माननीय हो रहा था। उसकी स्त्री भी वैसी ही गुणवती थी / उसी नगरमें जिनदेव नामका एक श्रावक रहता था। उसके साथ सोमचन्द्रकी बड़ी गाढ़ी मित्रता थी। एक दिन जिनदेवने अपने पास बहुत धन-द्रव्य रहते हुए भी अधिक उपार्जन करनेकी इच्छासे परदेश जानेका विचार किया और सोमचन्द्रसे आकर कहा,-"मित्र ! मैं धन कमानेके लिये परदेश जाना चाहता हूँ, इसलिये मैं तुम्हें जो धन दिये जा रहा हूँ, उसे विधिके साथ सात क्षेत्रोंमें व्यय करना / इससे जो पुण्य होगा, उसका छठा भाग तुम्हें भी प्राप्त होगा / " यह कह उसने दस हज़ार मुहरें सोमचंद्रके हाथमें दे, परदेशकी यात्रा कर दी। उसके जाने पर सोमचन्द्रने शुद्ध-चित्तसे उसके दिये हुए धनको विधि-पूर्वक उचित स्थानमें व्यय किया। इसके सिवा उसने अपने पासका भी बहुतसा धन धर्मके कार्यों में व्यय किया / इससे उसे बड़ा पुण्य हुआ। उसकी पत्नीने भी उस धनको खर्च करनेमें बाधा नहीं दी, इसलिये वह भी पुण्य-भागिनी हुई / . उसी नगरमें श्रीदेवीकी एक सहेली रहती थी, जिसका नाम भद्रा था। वह नन्द सेठकी पुत्री और देवदत्तकी स्त्री थी, कुछ दिन बीतने पर, कर्मके दोषसे देवदत्त कोढ़ी हो गया। इससे उसकी स्त्री भद्रा बड़ी ही दुःखित हुई / एक दिन उसने अपनी सखी भद्रास कहा, "हे सखी! न जाने किस कर्मके दोषसे मेरे स्वामी कोढ़ी हो गये हैं।" यह सुन, श्रीदेवीने हँसीके तौर पर कहा,-"सखी ! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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