SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .:: प्रथम प्रस्ताव। पदार्योंको देखकर अपना संशय दूर कर सकते हो। जब राजकुमारीने इस सफाईके साथ यह बात कही, तब सिंह सामन्त मंगलकलशके घर गया और अपनी दिलजमई कर, मंगलकलशके पिताको बुलाकर उसने उससे सारी कथा कह सुनायी। इसके बाद वह फिर राजकुमारीके पास चला पाया / तदनन्तर सिंह सामन्त की सलाहसे स्त्रीवेश धारण कर, राजकुमारी मंगलकलशके घर गयी और उसकी धर्मपत्नीके समान रहने लगी। .. उज्जयिनीके राजाने जब यह बात सुनी, तब उन्होंने सेठको अपने पास बुलाया और सब हाल सुन बड़ा आश्चर्य अनुभव किया। तदनन्तर राजाकी आज्ञासे मंगलकलश उसी मकानमें अपनी पत्नीके साथ विलास करने लगा। इसके बाद त्रैलोक्य सुन्दरीने सिंह सामन्तको सब सैनिकोंके साथ चम्पापुरी भेज दिया और उसके साथ ही अपनी मर्दानी पोशाक भी वापिस दी / सिंह सामन्तने चम्पापुरीमें आकर राजासे सब बातें कह सुनायीं / राजाने सब हाल सुन, प्रसन्न होकर कहा,-" अहा, मेरी पुत्रीने कसी कला-कुशलता दिखलायी ? और इस मंत्रीकी दुष्ट बुद्धिको तो देखो, कि इसने मेरी निर्दोष कन्याके सिर कितना बड़ा दोष मढ़ दिया ! " ___इसके बाद राजाने सिंह सामन्तको फिर उज्जयिनी भेजकर अपनी कन्या और जामाताको सादर बुलवा मँगाया और उनका भली भाँति आदर-सत्कार किया। तदनन्तर उस दुष्ट बुद्धि मंत्रीका सारा भण्डाफोड़ कर, उसकी सारी सम्पत्ति हरण कर ली और उसे वधभूमिमें ले जानेका हुक्म दिया। कोतवाल उसे गधे पर चढ़ा कर बस्तीके सब छोटे-बड़े रास्तोंमें घुमाता हुआ, वधभूमिमें ले गया। उस समय मंगलकलशने राजासे बड़ी विनती करके उसे छुटकारा दिलवा दिया। उसे छोड़नेकी आज्ञा देते हुए राजाने उनसे कहा,-रे पापी ! देख, मैं तुझे अपने दामादके कहने से छोड़ देता हूँ ; पर तू अभी मेरे राज्यसे बाहर निकल जा।" ... यह सुन, मंत्री उसी समय उस राज्यसे बाहर हो गया / राजाने कोई पुत्र न होनेके कारण मंगलकलशको ही अपना पुत्र माना और उसके माता-पिताको भी बड़े आदरसे वहीं बुलवा लिया। एक दिन राजाने मंत्री और सामन्त पादिकी सम्मतिसे बड़े धूम-धामके साथ, अपना राज्य मंगलकलशको दे डाला। तदनन्तर मरमुन्दर राजाने यशोभद्र नामक एक सूरिसे चारित्र ग्रहण किया / .. . सुरसुन्दर राजाके दीक्षा ग्रहण करने पर, यह सुनकर कि उनके राज्य पर माजकल एक वणिक् जातिके पुरुषका अधिकार है, कई एक सीमा-प्रतिके राजा सेना समेत उस राज्यको हड़पकर लेनेकी इच्छासे उस पर चढ़ पाये / मंगल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy