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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। anaanaaaaaaaaaaaaaaaaaxmamerana उपायसे इन अरवोंके पीछे-पीछे जाइये / " सिंहने कहा, "इन घोड़ोंके मालिककी विज्ञाधाला यहीं पास ही है। तुम एक दिन वहाँके अध्यापकको विद्यार्थियोंके साथ पाकर, भोजन करनेके लिये निमन्त्रण दे दो, फिर जैसा कुछ होगा, किया जायगा।" सुन्दरीने ऐसा करना स्वीकार किर लिया। भोजनकी सारी सामग्री तैयार कर उसने उपाध्यायको निमन्त्रण दिया / ठीक समय पर उपाध्याय अपने सब विद्यार्थियोंके साथ आ पहुँचे / उन विद्यार्थियोंके मध्यमें अपने. पतिको देख कर, त्रैलोक्यसुन्दरीके मनमें बड़ा ही आनन्द हुअा। तदनन्तर उसने हर्षके थावेशमें आकर अपना श्रासन और थाल. इत्यादि मंगलकलयके लिये भेजा और उसकी बड़ी भक्ति की / .. सबको आदरके साथ भोजन कराकर उसने वस्त्र भी दिये पार मंगलकलशको उसीके शरीरके दो सुन्दर वस्त्र दिये। इसके बाद उसने कलाचार्यसे कहा,-"आपके इन विद्यार्थियोंमें जो खूब अच्छी कहानी सुना सकता हो, वह मुझे एक कथा सुनाये / " यह सुन, मंगलकलयकी विशेष भाक्ति हुई देख, डाहसे जले हुए सब विद्यार्थियोंने कहा,"हमलोगोंमें मंगलकलश ही सबसे अधिक प्रवीण है, यही कथा सुनायेगा।" सबकी ऐसी बात सुन पण्डितने भी मंगलकलशको ही कथा सुनानेकी आज्ञा दी / पण्डिसकी आज्ञा पाकर मंगलकलशने कहा,-"कोई कल्पित कथा मुनाऊँ या आप बीती कह सुनाऊँ" यह सुन कुमार वेशधारिणी राजपुत्रीने कहा,"कल्पित कथा छोड़ो आप बीती घटना ही कह सुनाओ।" उसकी यह आवाज़ कानमें पढ़ते ही मंगलकलशने सोचा,-"यह तो वही त्रैलोक्यमन्दरी मालूम पड़ती है, जिसके साथ मैंने चम्पापुरीमें विवाह किया था। वहीं किसी कारण पुरुष वेश बनाकर यहाँ अायी हुई है।" यही सोच कर वह अपनी राम• कहानी सुनाने लगा। श्रादि, मध्य और अन्तका अपना सारा चरित्र, सुबुद्धि मंत्री द्वारा अपने घरसे हटाये जाने तकका हाल उसने कह सुनाया / यह सुन, राजकुमारीने बनावटी क्रोध दिखाते हुए कहा,- "कोई है ? अभी इस झूठी बातें बनानेवालेको गिरफ्तार कर लो।" यह सुनते ही उसके सेवकोंने उसे गिरफ्तार करना ही चाहा, कि स्वयं उसने उन्हें रोका और मंगलकलयको घरके अन्दर ले गयी। वहाँ उसे एक आसन पर बैठाकर, उसने सिंह सामन्तसे कहा,-"मेरा जिनके साथ विवाह हुअा था, वे मेरे स्वामी यही हैं। अतएव अब बतलाइये, कि मैं क्या करूँ ? शीघ्र विचार कर कहो।" सरदारने झटपट उत्तर दिया,-"यदि सचमुच यही तुम्हारे स्वामी हों, तो तुम इनको अंगीकार करो।" यह सुन, राजकुमारीने कहा,-"सरदार ! यदि तुम्हारे मनमें कोई शंका हो तो तुम अभी इनके घर जाकर, मेरे पिताके दिये हुए थाल मादि / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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