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________________ प्रथम प्रस्ताव कुमारीको पुरुषका वेश धारण करनेकी आज्ञा. देदें / " यह सुन, सामन्तका वचन युक्तियुक्त मान, राजाने अपनी कन्याको पुरुषकी पोशाक मँगवा दी और उसकी रक्षाके लिये सिंह सामन्तको सैन्यके साथ राजकुमारीके संग जानेकी अाज्ञा दी। इसके बाद राजकुमारीने कहा,-" यदि श्रापकी आज्ञा हो, तो मैं एक बड़े ही आवश्यक कार्यके लिये उजयिनी जाना चाहती हूँ। यदि वह कार्य सिद्ध हो गया तो मैं आने पर श्रापसे सारा हाल कह सुनाऊँगी।" यह सुन राजाने कहा, “पुत्री ! तू सानन्द चली जा, पर देखना ऐसा कोई काम न करना, जिससे अपने कुलमें दाग़ लगे।" यह कह, राजाने उसे जानेकी आज्ञा देदी / तदनन्तर पुरुषका वेश धारण कर सुन्दरी पिताकी श्राज्ञा ले,सिंह सामन्तकी __ बड़ी सेनाके साथ रात-दिन चलती हुई उज्जयिनीमें आ पहुँची। उसी समय .. लोगोंके मुँहसे वहाँके राजा वैरीसिंहने सुना कि, चम्पापुरीका राजकुमार यहाँ आ रहा है। इन दोनों राजाओंमें परस्पर बड़ी मैत्री थी, इस लिये यह सुनते ही वैरीसिंह उस पुरुषवेशधारिणी सुन्दरीके पास आ पहुँचे और उसका बड़े सम्मानसे आगत-स्वागत कर नगरीमें प्रवेश कराते हुए अपने महल में ले गये / इसके बाद जब राजाने उसके यहाँ आनेका कारण पूछा, तब उसने कहा,- "पृथ्वीमें प्रसिद्ध और आश्चर्यजनक वस्तुओंसे भरे हुए आपके इस नगरको देखनेके कौतूहलसे ही मैं यहाँ आ पहुँचा हू।" यह सुन राजाने कहा,"राजकुमार ! मेरे-तुम्हारे घरकासा नाता है। राजा सुरसुन्दर और मुझमें कोई अन्तर नहीं समझना।" यह सुन, वह राजपुत्री अपने सैनिकों और सवारियोंके साथ राजाके दिये हुए उस महलमें मुखसे रहने लगी। वहाँ रहते-रहते उसने एक बार अपने सेवकोंसे कहा, कि तुम लोग किसी स्वादिष्ट जलाशयका पता लगा लाओ। सेवकोंने पता लगाकर कहा, कि बस्तीसे पूर्वकी ओर एक स्वादिष्ट जलाशय है, यह मालूम होते ही वह सुन्दरी राजाकी आज्ञा ले, उसी दिशाकी ओर रास्तेमें एक मकान लेकर उसीमें रहने लगी। एक दिन वह अपने मकानकी खिड़की में बैठी हुई थी, कि इसी समय उधरसे पानी पीनेको जाते हुए अश्वोंको देखकर, उसने अपने मनमें विचार किया,ये घोड़े . तो मेरे पिताके ही मालूम होते हैं। यह विचार मनमें उठते ही उसने अपने सेवकोंको उनके पीछे लगा दिया और कहा,-"तुम लोग इन घोड़ोंके पीछे-पीछे जाकर देखो, कि ये कहाँ जाकर खड़े होते हैं और उस घरका पूरा पता, उसके मालिकका नाम आदि मालूम कर लाओ।" सेवकोंने ऐसा ही किया और स्थान आदि सब बातोंका पता लगा लाये / तदनन्तर मंगलकलशके कलाभ्यास करनेका हाल. मालूम कर, त्रैलोक्यसुन्दरीने सिंह सामन्तसे कहा,-"श्राप किसी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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