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________________ .. षष्ठ प्रस्ताव / का हाल सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई। इसके बाद गुणधर्मकुमार बड़ी देर तक अपनी स्त्रीले शतें करते रहे और सारी रात वहीं सोये। ... ...इसी समय उस विद्याधरके छोटे भाईने क्रोधमें आकर नीदमें पड़े हुए. गुणधर्मकुमारको उठा ले जाकर गम्भीर समुदमें डाल दिया और उसको..स्त्रीको एक.पर्वतार ले जाकर छोड़ दिया। देवयोगसे कुमार. को एक लकडोका तख्ता हाथ लग गया, जिसके सहारे घे सात रात बाद समुद्र के किनारे जा पहुंचे। वहां उनकी. एक तपस्वीसे मुलाफत हुई। उसी के साथ-साथ ये उस तात्यो के आश्रममें चले आये। वहीं उन्होंने अपनी स्त्री कनकयतीको भी देवा। कुमार कुलातिको प्रणाम फर उसके पास बैठ गये। तय कुलपतिने पूछा, “हे भद्र ! क्या यह स्त्री तुम्हारी पत्नी है ? कुमारने कहा,-"हाँ / " उस तापसने कहा,"परसों में जंगलमें गया हुआ था। वहीं मैंने इस बालाको तुम्हारे वियोगसे व्याकुल हो, पेड़से लटककर जान देोको तैयार देखा। उसी समय मैंने इसका पाश छिन्न कर यड़ी बड़ी मुश्किलोंसे इसकी जान घेवायो / इसके बाद मैंने अपने ज्ञानसे तुम्ह.रे आनेका हाल जान लिया और इसे समझा-बुझाकर सन्तुष्ट किया " जय कुलपतिने ऐसा कहां, तर कुमार आनी स्त्रीसे मिले। इसके बाद वे दोनों स्त्री पुरुष, ले आदि के फल खाकर रातके सतय उसो मिजेन लताव में सा रहे। इसी समय उस खेचरने फिर उन दोनों को वहाँसे उठा ले जाकर समुदों फेंक दिया। इस बार भी पूर्व कर्मों के प्रभावसे दोनोंका एक तस्ता हाथ लग गया, जिसके सहारे वे किनारे पहुंचे और फिर उसी स्थानपर आ गये। उस समय कुमारने कहा,-"ओह ! विधि-विडम्यना किसीसे जानी नहीं जाती। कहा है, कि- . . . ...... सींचरित्रं प्रेमगति, मेघोत्थानं नरेन्द्रचितं च / .. विषमविधिविलसितानि च, को वा शक्नोति विज्ञातुम् // 1 // " प्रयतस्त्रीका चरित्र, प्रेमकी गति, मेघकी उत्पत्ति,. राजाका P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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