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________________ 302 . श्रौशान्तिनाथ चरित्र। - इसके बाद ही दोनोंमें भयङ्कर युद्ध होने लगा। अन्त में बलशाली कुमारने मौका पाकर उस विद्याधरका सिर काट डाला और उसकी .. सारी सेना डर गयो। सबको गुण वर्मकुमारने मीठे वचनोंसे शान्तकर , ढांढस दिश। इसी समय अन्य तीनों युवतियोंने कहा, "हे स्वामी !:: आज आपने हम लोगोंको इस दुष्ट खेचरके फन्देसे छुड़ा दिया !" यह सुन, कुम ने पूछा,-"तुम लोग किस-किसकी लड़कियाँ हो ?" उन-: मेंसे पकने कहा, -- “शंखपुर नामक नगरमें दुलभराज नामके एक राजा: हैं। मैं उन्हींकी पुत्री हूं, मेरा नाम कमलावती है। इसी के भयके मारे मैंने आजतक विवाह करना भी नहीं स्वीकार किया। - कूमारने / पूछ,-"तुम्हारा भर कंपा था ? प्रेमका या क्रोध का ?" वह योली, "क्रोधका हो भय था। प्रेमका भला कैसे होता ? गोंकि एक दिन मैं आने मकानकी खिड़की पर बैठी हुई थी, वहींसे यह दुष्ट मुझे हर ले गया। जब यह मेरो जिला काट लेने को तैयार हुआ, तब इसने मुझे इस यातको मान लेने को मजबूर किया, कि मैं इसकी आज्ञाके बिना विवाह न करूंगी और हर रोज़ रातको इसके पास आया करूंगो.। तयः इसने कहा, कि तेरी सवारीके लिये मेरी आशासे निरन्तर विमान तैयार हो जाया करेगा। यदि यह बात तुझे स्योकार हो, तो मैं तुझे. छोड़ दूंगा और तेरी जान नहीं लूंगा। उसकी यह प्रात सुन, मैंने प्राणों के मोहसे इसकी बात स्वीकार कर ली और.सौगन्ध खायी। इसके बाद इसने मुझे नाचना सिखलाया। इसी तरह इसने ओर भी तीन राजकुमारियों को वशमें किया है , पर आज इसे मारकर मापने हम सभीको सुदी कर दिया।" : यह सुन, कु.पारने उन सबको उनके घर पहुँचा दिया। इसके बाद कुमार उस. दासीके साथ विमानपर बैठे हुए अपनो प्रियाके घर आये। उसी समय कनकवती कुमारको देखकर दासीले पूछ बैठो,–“हे सखी ! मेरे प्राणवल्लभने क्या उस. दुए विद्याधरको मार डाला.१.... इसके जवाब में उस दामीने उससे सारा हाल कह सुनाया। कनकवती अपने स्वामीकी बढ़ी-चढ़ी हुई घीरता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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