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________________ প্রীনিবনাথ নবিয় / / श्ता मही। मन, और बाम विधाताका विलास भला कौन जान सकता है, अर्थात् कोई नहीं जान सकता / - "सच है, विधि-विलास ऐसा ही हुआ करता है। अथवा, विषयमें - आसक्त चित्सवालोंको विपद् प्राप्त होना भी कुछ दुर्लभ नहीं है।" इसके बाद उन्होंने फिर विचार किया,-"हाँ, उत्तम प्रभावधाले जीव इसी तरह वैराग्य प्राप्त कर, सब परिग्रह छोड़ कर, ममता-रहित होकर निर्मल तपस्या करते हैं।" गुणधर्मकुमार ऐसा सोच ही रहे थे, कि इतने में कनकवतोने कहा,-"स्वामी! आप इतने पराक्रमी होकर भी . क्यों खेद करते हैं ? आज तक आप नीरोग रहते चले भाये और मापके किसी अंगमें कोई विकार नहीं है। कहा है, कि--- 'दीनोद्धारो न विदधे, नैकच्छत्रा कृता मही। विषया नोपभुक्ताश्च, प्रकामं विद्यतेऽथ किम् ? // 1 // ' ... अर्थात- 'दीनोंका उद्धार नहीं किया, पृथ्वीका एकछत्र राज्य नहीं किया, विषयों को नहीं भोगा, तो फिर अब इनके लिये अफसोस क्या करना !' . .. .. वे दोनों ऐसी-ही-ऐसी बातें कर रहे थे, कि इतने में रात हो आयी, परन्तु कुमार, अपनी स्त्रीकी बातें सुन, अपने चित्तमें वैराग्यकी भावना कर रहे थे, इसीलिये उन्हें नींद नहीं आयी / इसी समय वह खेचर फिर वहाँ आ पहुँचा / कुमारने उसे हरा कर जीता ही छोड़ दिया / इसके बाद प्रातः काल होने पर कुमार, कुलपतिको प्रणाम कर, एक नगरमें चले गये / वहाँ बाहरकी तरफ़ एक उद्यानमें गुणरत्न महोदधि नामक सूरिको देखकर कुमारने प्रियाके सहित उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम किया / इसके बाद उनकी मोहरूपिणी निद्राका नाश करनेवाली - धर्मदेशना सुन, सूरिको प्रणाम कर, एकान्तमें जाकर धेराग्यमें तत्पर कुमारने अपनी प्रियासे कहा,-"प्रिये ! अब हमें इन्हीं गुरुजीसे दीक्षा ले लेनी चाहिये।" यह सुन, विषयोंसे विरक्त नहीं हो, चुकनेवाली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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