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________________ ..पञ्चम प्रस्ताव / यह नाम व्यर्थ ही पड़ा। तुममें तो सियारोंकी सी हिम्मत भी नहीं है। यह वत्सराज तुम्हारे आसन पर बैठ गया और तुम अभी तक कुछ न कर सके ! इससे तो तुम जीते-जी मुर्दा मालूम पड़ते हो। कहा भी है- . 'माजीवन् यः परावज्ञा-दुःखदग्धोऽपि जीवति / तस्या जननिरेवास्तु, जननीक्लेशकारिणः // 1 // अर्थात्--"जो कुत्सित प्राणी, दूसरोंकी की हुई अवज्ञाके दुःख से जलते रहने पर भी, जीते हैं, वे अपनी माँको नाहक पुत्रप्रसव करने का कष्ट देनेवाले होते हैं--वे तो नहीं पैदा होते, यही ठीक होता / " . मन्त्रियोंकी यह बात सुन, सिंहका क्रोध बहुत बढ़ गया और वह अपने आदमियों के साथ राजसभाके सिंहद्वारके पास आया / वहाँ क्त्स. राजको देख, उसने कहा, "रेवत्सराज ! क्या तुझे अपने जीधनसे घृणा हो गयी है, जो आज तु मेरे आसनपर बैठ रहा ? यदि तूने मुझे देखा नहीं था, तो क्या मेरा नाम भी नहीं सुना था, कि इस प्रकार मेरा अपमान कर बैठा ? सचमुच, यह कहावत बहुत ठीक है, कि मौतके दिन, पास आनेपर चींटियोंके भी पर निकल आते हैं।" यह कह, सिंह वत्सराजसे युद्ध करने लगा। इतने में कुमारने अपने बाहुबलसे उसका हाथ पकड़ कर बन्दरकी तरह उसे उठाकर अपने सिरके चारों ओर घुमाते हुए इस तरह जोरसे फेंका, कि वह तत्काल मर गया। यह देख, सबने कहा,-"खाद खनै जो और को, ताको कूप तैयार / " इसके बाद सिंहके सब सैनिक डरकर राजाकी शरणमें चले गये। इसके बाद वत्सराज घर आये। तब उनकी पत्नी-उन दोनों विद्याधरियोंने कहा,-"स्वामी ! तुमने हमारी विद्याके ही प्रभावसे उस सिंहको मार गिराया है। यह सब उपद्रव राजाका खड़ा किया हुआ है / यह अभी और न जाने क्या-क्या उपद्रव करेंगे। उनके यहाँ आने पर तुमने हम लोगों को उनके सामने बुला लिया, यही सारे फ़िसादकी जड़ है। यह सुनकर, वत्सराजने उनकी बातको सच मान लिया। . .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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