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________________ 262 श्रोशान्तिनाथ चरित्र। बाद वत्सराजने उत्तम ताम्बूल और वस्त्र आदि देकर राजा तथा उनके परिवार वर्गका खूब आदर-सत्कार किया। सब कुछ लिये-दिये राजा, सबके साथ अपने घर आये। परन्तु कामदेवको पीड़ासे वे सदा पीड़ित रहने लगे। इसी लिये उन्होंने अपने मन्त्रियोंको बुलाकर उन स्त्रियोंके सङ्गमकी इच्छासे अपना मतलब गाँठनेका उपाय उनसे पूछा / मन्त्रियोंने आपसमें विचारकर एक राय होकर कहा, - “हे स्वामी ! जबतक वत्सराज जीता है, तब तक तो यह काम होनेका नहीं, इसलिये हैं देव! किसी-न-किसी उपायसे वत्सराजको मार डाला जाये, तो आपकी मनस्कामना पूरी हो—यो तो होनेकी नहीं।” यह सुन, राजाने कहा,"तो उसके मारनेका ही कोई उपाय सोचो।" इसके बाद मन्त्रियोंने सलाह कर एक दिन वत्सराजको मार डालनेकी तरकीब सोच निकाली। सिंह नामका एक सामन्त राजा था। वह सिंहके ही समान भयङ्कर था। इसलिये कोई उसके सामने देख भी नहीं सकता था। वह जब राजाकी सेवा करनेके लिये आता था, तब राजाको प्रणाम कर जिस आसन पर बैठा करता था, उसपर दूसरा कोई नहीं बैठ सकता था। यदि किसी दिन कोई उसपर बैठ जाता, तो इससे वह अपना बड़ा अपमान समझता था और उसे मारनेको तैयार हो जाता था। उसके शरीर और सैन्य दोनोंका बल था। इससे वह जल्दी किसीसे हारता नहीं था। राजा भी उससे पुरा करते थे। एक दिन सिंह सामन्त सभामें नहीं आया था, इसी समय कपट-बुद्धि मन्त्रियोंने उसके आसनपर वत्सराजको धोखा देकर बैठा दिया। थोड़ी ही देरमें सिंह सभामें आया। उस समय अपनी जगहपर वत्सराजको बैठा देख, सिंहने कोपसे भौहें चढ़ा ली; पर बेचारा क्या करे ? सभामें तो कोई किसीसे बोल ही नहीं सकता था-राजदरबार में तो राजा और रङ दोनोंका दर्जा बराबर है। इसीसे वह निष्फल क्रोध करके ही रह गया। इसके बाद जब सभा विसर्जित हुई, तब वत्सराज सरलताके कारण निर्भय होकर धीरेधीरे जाने लगे। उस समय मन्त्रियोंने सिंहसे कहा,-"सिंह ! तुम्हारा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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