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________________ पञ्चम प्रस्ताव। 261 लगा दिये, जिनमें मिठाइयाँ, खाजे, दाल, भात, घी आदि मनोहर भोज्य. द्रव्य परोसे गये थे। तरह-तरहकी बघारसे खुशबूदार मालूम पड़ते हुए साग भी परोसे गये। हलवा, घेवर, खीर और दही आदि चीजें भी परोसी गयीं। ऐसा रसीला भोजन करते हुए राजाने सोचा,-"मैं सदा अपने घर भोजन करता हूँ ; पर ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी नहीं मालूम होता। यह तो साक्षात् अमृततुल्य भोजन मालूम पड़ता है।" ऐसा सोचते और स्वादिष्ट भोजन होनेके कारण सिर हिलाते हुए राजा भोजन कर रहे थे। इसी समय वत्सराजने सोचा,-"यह उत्सव तो प्रियतमाओंके बिना अच्छा नहीं लगता।" ऐसा विचार कर उन्होंने कोठेपर जाकर अपनी स्त्रियोंसे कहा, -- “मेरी प्यारियो ! अब तुम लोग बाहर आकर राजाकी ख़ातिरदारी करो।” स्वामीकी यह बात सुन, उन्होंने मनमें सोचा,-"कुलवती स्त्रियोंके लिये पतिही गुरु और पूज्य होता है। कहा भी है, कि 'गुरुरग्निर्द्विजातीनां, वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः / / . . पतिरेव गुरुः स्त्रीणां, सर्वस्याभ्यागतो गुरुः // 1 // ' .. अर्थात्- "ब्राह्मणों का गुरु अग्नि, वर्गों का गुरु बाह्मण, स्त्रियों का गुरु पति और सबका गुरु अतिथि है / ' . . . . . . _ "इसलिये कुलाङ्गनाओंको हर हालतमें अपने स्वामीकी बात माननी चाहिये।". यही सोचकर उन सबने अपने स्वामीकी बात मान ली। फिर भी उन्होंने आपसमें सलाह की, कि स्वामीने जो हमें राजाके सामने आनेकी आम दी है, इसका नतीज़ा उनके हकमें अच्छा नहीं होगा ; पर किया क्या जाये ? पतिकी बात टाली भी तो नहीं जा सकती!" यह कह, वे तीनों सुन्दर शृङ्गार किये, पतिकी आज्ञासे भोजन परोसने आयीं। उस समय उन तीनोंकी सुन्दरता देख, राजा कामातुर हो गये और अपने मनमें सोचने लगे,—"इस संसारमें वत्सराज ही धन्य हैं, जिसे ऐसी तीनों जगत्में प्रशंसनीय मनोहर रूपवाली तीन स्त्रियाँ मिली हैं। ऐसा ही विचार करते हुए वै राजा खा-पीकर उठ गये। इसके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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