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________________ 264 ~ ~ ~ ~ श्नीशान्तिनाथ चरित्र। / एक दिन फिर मन्त्रियोंके साथ सलाहकर, राजाने वत्सराजले कहा, "हे वत्सराज ! मुझे बाघिनका दूध चाहिये- बड़ी सख्त जरूरत है। जब तुमसा मित्र मेरे पास है, तब मेरे लिये कुछ भी दुर्लभ / नहीं है। यह सुन, वत्सराज उनकी बात स्वीकार कर अपने घर आये। उस समय पतिका चेहरा चिंतासे सूखा हुआ देखकर उनकी दोनों प्रियतमाओंने पूछा,-“हे नाथ ! क्या उस दुष्ट राजाने तुम्हें आज बाधिनका दूध लानेकी आज्ञा दी है ?" वत्सराजने पूछा,-"प्यारियो! तुम लोगोंको यह हाल कैसे मालूम हुआ ?" उन्होंने कहा,-"स्वामी : हम सदा छिपी-छिपी तुम्हारे साथ ही रहती हैं।" यह सुन, वत्सराजने उनकी बातको सच मान लिया। उन दोनोंने फिर कहा,-"स्वामी! राजा ऐसेही हुआ करते हैं। उनके साथ मित्रता कैसी ? कहा है,... 'काके शौचं द्युतकारे च सत्यं, सपै शान्तिः स्त्रीषु कामोपशान्तिः / क्लीबे धैर्य मद्यपे तत्वचिन्ता, राजा मित्र केन दृष्टं श्रुतं वा ?' . अर्थात्-काकमें पवित्रता, जुआरीमें सत्यता, साँपमें क्षमा, स्त्रीमें, कामकी शान्ति, नपुंसकमें धैर्य, मद्यपीमें तत्वचिंता और राजा की मित्रता भला किसने देखी--सुनी है ?' . . . खैर, राजाके मँगाये हुए बाघिनके दूधके लिये तुम फ़िक्र न करो। हमारी बात सुनो। तुम इसी घोड़े पर सवार हो, यहाँसे उसी पहले वाले जङ्गलमें चले जाओ। हमारी माता, जी देवी हो गयी हैं, उसकी एक सखी-दूसरी देवी वहाँ रहती है। वह इस घोड़ेको देखकर तुम्हें पहचान लेगी / तुम उससे यह बात कहना / बस, वह बाधिनका रूप बनाये तुम्हारे साथ चली आयेगी। बस उसे राजाके पास लाकर कहना, कि लीजिये, अब इसका दूध दुह लीजिये।" . .. - . अपनी पत्नियोंकी यह बात सुन, जंगलमें जा, बाघिनका रूप धारण - किये हुई उस देवीको कान पकड़े हुए राज दरबारमें ले आकर वत्सराजने कहा, - "हे. राजन् ! यह मैं अभी हालकी व्यायी हुई बाघिन लेता आया हूँ। लीजिये, इसे दुह लीजिये और अपनी मनस्कामना पूरी कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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