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________________ AAMANANAANA mornr~ ~ . पञ्चम प्रस्तावं। 253 तुम्हारी आज्ञासे मेरा शरीर तो यहीं रहेगा; पर चित्त तुम्हारे साथ जायेगा। हे स्वामी ! और भी सुन लो कि-. ... "कुंकुमं कंजलं चैव, कुसुमाभरणानि च / लगिष्यन्ति शरीरे मे, त्वयि कान्ते समागते // 1 // " . अर्थात्--'हे स्वामी ! अब जिस दिन तुम लौटकर आयोगे, उसी दिन मेरे शरीरको कुंकुम, काजल, फूल और गहने स्पर्श करने पायेंगे।' . इस प्रकार प्रतिज्ञा करनेवाली अपनी स्त्रीको वहीं छोड़, सेठकी आज्ञा ले, वत्सराज उसी जङ्गलकी राह आगे बढ़े / उसी जङ्गलमें उन्होंने भीलोंका एक छोटासा गाँव देखा / उसके पासही बहुतसी पहाड़ियाँ और पहाड़ी नदियाँ भी दिखाई दी। इन सब प्राकृतिक दृश्योंको देखते हुए वे चले जा रहे थे, कि इतनेमें एकं जगह उसी जंगलके सिलसिलेमें उन्हें बड़े-बड़े महलोंसे सुशोभित एक नगरी दिखाई दी। उसे देखकर कुमारको बड़ा आश्चर्य हुआ। उस नगरीके बाहर एक सुन्दर सरोवर था। उसीमें हाथ-मुँह धोकर उन्होंने उसीका पानी पिया और उसीके घाटपर एक वृक्षके नीचे पालथी मारे बैठ रहे / इतने में उन्हें तालाबसे पानी लेकर जाती हुई स्त्रियोंका झुण्ड दिखाई दिया। उन स्त्रियोंको देख, आश्चर्य में आकर कुमारने एकसे पूछा,-" यह नगरी कौनसी है ? यहाँका राजा कौन है ? " उसने जवाब दिया,"यह नगरी व्यन्तर देवियों ( एक प्रकारकी प्रेतिनी) की क्रीडाका स्थान है। यहाँका कोई राजा नहीं है।" यह सुन, वलराजने फिर पूछा,-"यदि यह नगरी व्यन्तर-देवीकी है, तो फिर तुम लोग इतना पानी कहाँ लिये जाती हो ? " वह बोली,--“हे सत्पुरुष ! हमारी स्वामिनी, जो एक देवी हैं, कहीं गयी हुई थीं। वहाँ किसी पुरुषने उसके हाथपर तलवारका वार कर दिया है, जिससे वह बड़ी तकलीफ़ पा. रही हैं / उसीकी पीड़ा दूर करनेके लिये हमलोग उसके हाथ पर पानीके छीटे देती हैं। बहुतेरा सींचा गया, तो भी उसके हाथकी चोट अभी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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