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________________ 252 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। बिना मुझे अपनी कन्या क्यों दे रहे हैं ?" सेठने कहा,-."तुम्हारे गुणोंसे ही तुम्हारे कुलकी पहचान हो गयी। कहा भी है, कि 'प्राकृतिर्गुणसमृद्धिशंसिनी, नम्रता कुल-विशुद्धि-सूचिका / वाक्क्रमः कथितशास्त्रसंक्रमः, संयमश्च भवतो वयोऽधिकः // 1 // अर्थात्- "तुम्हारी प्राकृतिसे ही यह मालूम हो जाता है, कि तुममें बहुतसे गुण भरे हैं, तुम्हारी नम्रता कुलकी शुद्धताकी सूचना दे रही है, तुम्हारी बातचीतका ढंग यह साफ बतलाये देता है, कि तुमने शास्त्रों का अध्ययन किया है और तुम्हारा संयम तो तुम्हारी अवस्था देखते हुए. बहुत बढ़ा-चढ़ा है / ( छोटी उम्रके होनेपर भी तुममें वृद्ध पुरुषोंकीसी स्थिरता है )" * यह सुन कुमारने कहा, “सेठजी ! अभी मुझे एक बहुत ज़रूरी कामके लिये दूर-देश जाना है / इसलिये आपका वह काम तो मैं पीछे लौटनेपर करूंगा।" यह सुन, सेठने कहा,-"पुत्र ! पहले मैं तुम्हारे साथ इसका ब्याह कर दूं, इसके बाद तुम्हारी जहाँ इच्छा हो, चले जाना।" यह सुन, कुमारने उसकी बात मान ली। इसके बाद उसी दिन उस कन्याके साथ विवाहकर, एक रात उसीके साथ बिताकर, दूसरे दिन उन्होंने यात्रा करनेके लिये विदा माँगी। इसपर उस कन्याने अपने स्वामीसे कहा,. "विरहो वसन्तमासी, नवस्नेहो, नवं वयः / पंचमस्थ ध्वनिश्चेति, सह्याः पंचाग्नियः कथम् // 1 // " . अर्थात्--"विरह, वसन्त-मास, नया स्नेह, नयी उमर, कोयलका पञ्चम स्वर-इन पाँचों अग्नियोंकी आँच भला कैसे सही जायगी ?" . . यह सुन, वत्सराजने कहा,-"ठीक समझ लो, प्रिये ! यदि मैं / देशान्तर नहीं गया, तो मुझे आगमें जल मरना पड़ेगा / इसमें कोई सन्देह नहीं / " इसपर वह बोली,"हे नाथ ! देखो, मैं तुम्हारे सामने ही इन बालोंकी वेणी बाँधती हूँ, अब यह तुम्हारे आनेपर ही खुलेगी / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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