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________________ पञ्चम प्रस्ताव। 255 दग़ा हुआ। मैंने बड़ा धोखा खाया / " यह शब्द सुन, वत्सराज यह कहते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़े, कि अरी दासी! तू कहाँ चली जा 5 रही है ? हाथमें खड्न लिये पुण्यसे बलवान् बने हुए वत्सराजको पीछे. पीछे आते देख, उसे परास्त करनेमें अपनेको असमर्थ समझ कर वह देवी उसी समय भाग गयी। इसके बाद पीछे लौटकर वत्सराजने उस शय्यापरसे वह लकड़ी हटा दी और आप उसीपर बैठ रहे / इतने में रात बीत गयी और उदयाचल-पर्वतपर सूर्यका उदय हुआ। इसी समय कुमारीकी नींद खुली और उसने अक्षत शरीरसे बैठे हुए कुमार-. को देखकर हर्षित हो अपने मनमें विचार किया,--"अवश्य ही यह कोई बड़ा प्रभावशाली मनुष्य-रत्न मालूम पड़ता है। इसीसे यह नहीं मरा / मेरे सोये हुए भाग्य अब जगनेही वाले हैं और मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ ही चाहता है। अब यदि यह मनुष्य स्वामी हो तो मैं इसके साथ संसारके सुख भोगें, नहीं तो इस जन्ममें मेरा वैराग्य ही ठीक है।" यही विचार कर उस लड़कीने मधुर वचनोंसे वत्सराजसे कहा,-- "हे नाथ ! आपने कैसे विपदसे छुटकारा पाया ? वह कहिये / " उसके ऐसा पूछने पर घत्सराजने उससे रातका सारा हाल कह सुनाया। यह सुनते ही श्रीदत्तके रोंगटे खड़े हो गये। साथ ही उसे बड़ा हर्ष भी हुआ। धे दोनों इस प्रकार बातें कर ही रहे थे, कि उस लड़कीकी सेविका दासो. उसके मुंह धोनेके लिये जल लिये हुए आयी। उसने भी कुमारको भला-चङ्गा देखकर अपने मनमें बड़ा हर्ष माना और उनको इस प्रकार क्षेमकुशलसे रहने पर बधाई दी। यह समाचार सुन, सेठको भी बड़ा अचम्भा हुआ और वह भी वहां आ पहुँचा। श्रीदत्ताने झटपट उठकर पिताको आसन दिया। उसपर बैठे हुए सेठने कुमारसे पूछा,.. "हे वीर ! तुम रातको दुःखसागरके पार कैसे उतरे ?" इसपर कुमारने सेठको भी राई-रत्तो सारा हाल कह सुनाया। तब सेठने कुमारसे कहा,---“हे कुमार ! मैं अपनी यह प्राणप्यारी पुत्री तुम्हारे ही हाथोंमें सौंपता हूँ।" यह सुन कुमारने कहा, "आप मेरा कुल-शोल जाने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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