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________________ 254 श्रोशान्तिनाथ चरित्र। सफ अच्छी नहीं हुई ! " यह सुन, वत्सराजने. कहा,-"क्या वह देवो स्वयं अपने शरीरकी पीड़ा दूर नहीं कर सकती ? " वह बोली,- "हे पथिक ! उस तलवार चलानेवाले पुरुष पर किसी देवताकी छाया है, इसीसे उसका प्रभाव अधिक है। इसीलिये उसकी पीड़ा अभी तक शान्त नहीं हुई। इसके सिवा घ्यन्तरोंके राजाने दो महौषधियाँ उसे दे रखी थीं, जिन्हें वह हाथ पर बाँधे रहती थी। उनमें एकसे जो धुआँ निकलता रहता था, उससे लोगोंके होशोहवास जाते रहते थे और दूसरी महौषधि हर तरहकी चोट और ज़ख्मोंकी दवा थी / वे दोनों महौषधि भी उसके हाथसे तलवारकी चोट लगतेही नीचे गिर पड़ी थीं।” यह सुन, वत्सराजने कहा, "भद्रे ! मैं मनुष्यवैद्य हूँ।” पर यदि मैं तुम्हारी स्वामिनीका ज़ख्म अच्छा कर दूं तो मुझे क्या इनाम मिलेगा ?" इसपर वह बोली,-"तुम जो कुछ माँगोगे, वही मिलेगा।" यह कह, वह फिर बोली,-"भाई ! अभी तो तुम यहीं रहो- पहले मैं अपनी स्वामिनीसे जाकर तुम्हारे आनेकी बात करती हूँ।" यह कह, उसने अपनी स्वामि...मीके पास जाकर यह सब हाल कहा / इसपर उसने हुक्म दिया, कि उस आदमीको जल्द मेरे पास ले आओ / अब तो वह स्त्री बाहर आकर घस्सराजको अपने साथ ले चली। रास्तेमें वह वत्सराजसे कहने लगी,–“हे सत्पुरुष ! जब हमारी स्वामिनी तुमसे सन्तुष्ट होकर घरदान मांगनेको कहें, तो तुम महलके ऊपर रहनेवाली दोनों कन्याओं, अश्वके रूपवाले यक्ष और इच्छित वस्तुओंको दिला: देनेवाले पर्यडके सिवा और कुछ नहीं मांगना.।" यह सुन, उसकी बात स्वीकार कर, वत्सराज देवीके पास चले आये ।यहाँ देवीने उन्हें सुन्दर आसन बैठनेको दिया। कुमार उसीपर बैठ रहे। देवी उनसे बड़े आदरके साथ बातें करती हुई बोली,-"भाई ! यदि तुम सचमुच वैधक जानते हो, तो शीघ्र मेरी पीड़ा दूर कर दो।" यह सुन, वत्सराजने उसी समय धूम्रौषधिसे धुआँ पैदाकर, घणसंरोहिणी नामक औषधिसे उसकी व्यथा दूर कर दी। / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. .
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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