________________ 14 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कुछ दिनों में शोक-रहित से हो गये। इतने में एक दिन उसकी माताने उसे रथमें बैठे हुए, अपनी घरकी तरफ आते देख, पुत्रको नहीं पहचाननेके कारण, सहसा पुकार कर कहा,- "हे राजपुत्र ! तुम मेरे घर पर रथ क्यों ला रहे हो ? सीधी राह छोड़कर नयी राह क्यों जा रहे हो ?" परन्तु इस प्रकार रोकने पर भी जब उसने रास्ता नहीं बदला, तब सेठानीने बहुत ही घबराकर सेठको बुलाया और उनको सारा हाल कह सुनाया। यह सुन, सेठ उसे रोकनेके लिये ज्योंहीं घरसे बाहर निकले, त्योंही मंगलकलशने रथसे नीचे उतर कर, पिताके चरणों में माथा टेका। तबतो पिताने पुत्रको पहचान कर, उसे बड़े प्रेमसे गले लगा लिया / इसके बाद आनन्दके आँसू ढलकाते हुए माता-पिताने पहले तो उसका कुशल समाचार पूछा। इसके बाद और-और बातें पूछी। इस अपार सम्पत्तिके प्राप्त होनेकी बात भी पूछी। इस पर मंगलकलशने अपना सारा हाल माता-पिता को कह सुनाया। यह सुन, उसके माता-पिताने मन-ही-मन विचार किया, "अहा ! इस लड़केका भाग कितना बड़ा है !" इसके बाद सेठने अपने घर को तुड़वाकर किला बनवाया और उसमें गुप्त रीतिसे उन पाँचों अश्वोंको रख दिया। पुत्रके घर आजानेकी खुशीमें सेठके घर बड़ी धूमधामसे बधाइयाँ बजने लगी। एक दिन मंगलकलशने अपने पितासे कहा,-"पिताजी ! अभी मुझे थोड़ासा कलाभ्यास करना बाकी रह गया है, उसे भी पूरा कर डालूँ, तो अच्छा है।" यह सुन, सेठने अपने घरके पास ही रहनेवाले एक कलाचार्यके पास उसे कला सीखनेके लिये भेज दिया। वह वहीं अभ्यास करने लगा। इधर चम्पापुरीमें मंत्रीने पुत्रको मंगलकलशके गहने. कपड़े पहना कर, रात के समय राजकुमारीके कमरेमें भेजा। वह आते ही सेजपर बैठ गया। उसे देखते ही त्रैलोक्यसुंदरीने सोचा,-"यह कौन कोढ़ी मेरे पलंग पर आ बैठा ?" इसके बाद वह ज्योंही राजकुमारीको छूनेके लिये आगे बढ़ा, त्योंही वह शय्या से नीचे उतर पड़ी और भागी हुई वहाँ चली आयी, जहाँ उसकी दासियाँ सोयी हुई थीं। उसे इस तरह एकाएक वहाँ पहुँची देख, दासियोंने पूछा,-"स्वामिनी ! आप इतनी घबरायी हुई क्यों मालूम पड़ती हैं ?" उसने उत्तर दिया,-" मालूम होता है, कि मेरे देवताके समान सुंदर स्वरूपवान् स्वामी कहीं चले गये।" दासियोंने कहा,- “नहीं, नहीं-अभी तो वे तुम्हारे कमरेमें गये हैं !" राजकुमारीने कहा,-" वह मेरा पति नहीं, कोई कोढ़ी मालूम पड़ता है। " यह कह, वह सुंदरी रात भर दासियोंके ही मध्यमें सोयी रही / सारी रात वहीं बिताकर, सवेरा होते ही नौलोक्य सुन्दरी अपने पिताके घर चली गयी। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC..Gunratnasuri M.S.