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________________ प्रथम प्रस्ताव। कहते सुनाई दिये, कि अब किसी उपायसे शीघ्र ही यहांसे हटा देना चाहिये। यह सुन और आकार-प्रकार तथा चेष्टासे अपने स्वामीको चंचल देख, त्रैलोक्य-सुन्दरी अपने पतिके पास ही चली आयी / थोड़ी देर बाद मंगलकलश शौचादिके लिये उठ खड़ा हुआ / यह देख, राजकुमारी भी जलका पात्रा हाथमें ले, उसके पीछेपीछे गयी। उस जलको ले, शौचादिसे निवृत्ति होकर मंगलकलश फिर घरमें चला पाया ; परंतु उसके मनमें चिन्ता बनी हुई थी। उस समय त्रैलोक्यसुंदरीने अपने पतिको शून्य - चित्त देख, विल्कुल एकान्त पाकर पूछा--"प्राणनाथ ! क्या आपको भूख मालूम होती है ? " इसके जवाबमें उसने हाँ कह दिया। यह सुन उसने अपनी दासीसे पिताके घरसं आये हुए मिष्टान्न मँगवा कर दिये। उन्हें खाकर पानी पीते-पीते मंगलकलशने कहा,-- " अहा ! यह सुंदर केसर भरी मिठाई खानेके बाद यदि कहीं उज्जयिनीका जल मिल जाता, तो फिर कैसी तृप्ति होती ! बिना उसके तृप्ति कहाँ ?" .. ___यह वचन मुन, राजकुमारी मन-ही-मन व्याकुल होकर सोचने लगी,-"एँ ! ये ऐसी विचित्र बात क्यों बोल रहे हैं ? इन्हें उजायनीके जलकी मिठास कैसे मालूम हुई ? अथवा हो सकता है, कि इनका ननिहाल वहाँ हो और ये लड़कपनमें वहाँ जाकर वहाँका हवा-पानी देख आये हों। इसके बाद उसने पाँच सुगन्धित पदार्थोसे मिश्रित ताम्बूल, आपने हाथों बनाकर, पतिकी मुखशुद्धि के लिये दिये / थोड़ी देरमें मन्त्रीने मंगलकलशके पास आदमी भेजकर उसे समय की सूचना दी, जिसे सुनते ही मंगलकलशने त्रैलोक्यसुन्दरीसे कहा,-"प्यारी ! मुझे फिर शौच जानेकी इच्छा हो रही है-पेटमें बड़ा दर्द हो रहा है। लेकिन देखना, इसबार जलका पात्र लेकर जल्दी न आना / थोड़ी देर ठहर कर आना।" यह कह, वह घरसे बाहर चला आया। . मंत्रीके पास पहुँच कर उसने पूछा,-"राजाने जो मुझे अश्व इत्यादि पदार्थ दिये थे, वे सब कहाँ रक्खे हैं ?" मन्त्रीने कहा, "वे सब उज्जयिनीके रास्तेमें हैं। - यह सुन वह वहाँ गया और सब चीज़ोंको एक रथ पर रखकर, उसमें चार घोड़े जोत दिये। पाँचवें घोड़को पीछे बाँध दीया। बहुतसी चीजें तो उसने वहीं छोड़ दी और अपनी नगरीकी राह नापी। रास्तेमें जो जो गाँव मिलते गये, उन सबके नाम उसने मन्त्रीके सेवकोंसे मालूम कर लिये / इस तरह रथमें बैठा हुआ रात-दिन चलकर, वह कुछ दिनोंमें अपनी नगरीमें आ पहुँचा / ___ इधर मंगलकलशके गुम हो जानेके बाद उसके माता-पिताने उसकी बड़ी खोज-ढूँढ करवायी; पर जब कहीं उसका पता न मिला, तब रोते-रोते थककर वे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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