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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। नोंमें शिरोमणि मंत्रीके सोचे हुए कुकर्ममें साझीदार बननेको तैयार नहीं हुआ। इसी समय कुछ और बड़े बूढ़े लोग वहाँ आ पहुँचे और मंत्रीको उसका वध करने से रोक कर मंगलकलशसे बोले,-"भाई ! तुम मंत्रीकी बात मान लो। बुद्धिमान् मनुष्य समय देखकर काम किया करते हैं।" यह सुनकर उसने मन-ही-मन विचार किया,-- "निश्चय यही बात होनेवाली है; नहीं तो मेरा उज्जयिनीसे यहाँ आना क्यों कर होता ? सर्व प्रथम अाकाशवाणीने भी तो यही बात कही थी। इस लिये मुझे यह बात अवश्य स्वीकार कर लेनी चाहिये, क्योंकि जो होनहार होती है, वह तो होकर ही रहती है।" यही सोचकर उसने अवके मंत्री से कहा,- “यदि मुझे लाचार होकर यह निर्दय कार्य करना ही पड़ेगा, तो क्या करूँगा ? अस्तु मैं आपकी बात माने लेता हूँ; पर आपको भी मेरी एक मांग पूरी करनी होगी।" यह सुनतेही मंत्रीका सुर नरम होगया और उसने बड़े तपाकके साथ कहा,- "हाँ, हा, झटपट कह डालो। मैं तुम्हारी मांग अवश्य पूरी करूँगा।" ... मंगलकलशने कहा,-"राजा जो-जो चीजें मुझे देंगे, उन सबका मालिक आप मुझे ही समझना और उन सभी वस्तुओंको तत्काल उजयिनीके मार्गमें लाकर उपस्थित कर देना / " मंत्रीने झटपट उसकी यह बात मानली। इसके बाद, जब व्याहका मुहूर्त समीप आया, तब मंत्री उसे अच्छे-अच्छे वस्त्रालंकार पहना, हाथी पर बैठाकर राजाके पास ले गया। उसका मुन्दर रूप देख, राजा मुग्ध हो गये / औलोक्य-सुन्दरी उस कामदेवके समान वरको देखकर मन-ही-मन अपनेको कृतार्थ मानने लगी। तदनन्तर विवाहके समय 'पुण्याऽहं, पुण्याऽहं' इस प्रकारका वाक्य उच्चारण करते हुए ब्राह्मणने वर-वधूको अग्निका चार बार फेरा दिलवाया। चारों प्रकारके मंगलाचार करवाये / पहले मंगलाचार के समय राजाने वरको बड़े ही सुन्दर-सुन्दर वस्त्र दान किय, दूसरेमें श्राभूपण दान किये, तीसरेमें मणि-रस्न, सुवर्ण आदि मूल्यवान् पदार्थ दिये और चौथेमें रथ आदि वाहन प्रदान किये / इस प्रकार बड़े ही आनन्दसे वर-वधूका विवाह हो गया। विवाहकी सारी क्रिया समाप्त होनेपर, जब जामाताने वधूका हाथ पकड़ा, तब उसके हाथ अलग करनेके पहले ही राजाने पूछा,- "वत्स ! अब मैं तुम्हें कौन सी चीज़ दूं ? " यह सुन, उसने पाँच अच्छी नसलके तेज घोड़े माँगे / राजा बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने तत्काल उसके मांगे अनुसार पाँचघोड़े उसे दे दिये। इसके बाद गाजे बाजेके साथ मुन्दरियोंके मंगल-गीत और भाट चारणोंके जय-जय शब्द सुनते हुए मंगलकलश अपनी नव-विवाहिता पत्नीके साथ मंत्रीके घर आया। रातके समय मंत्रीके आदमी छिपे छिपे यह बात Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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