________________ annnnnnn पञ्चम प्रस्ताव। nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn 223 नहीं किया। उन्होंने अपने मनमें यही सोचा,"जो अङ्गीकार किये हुए कार्यका निर्वाह करता है, वही इस जगतमें धन्य है। मेरे ये परिजन अपने निजी स्वार्थके लिये मुझे रोक रहे हैं, परन्तु इस असार .. शरीरसे परोपकार कर लेना ही सार है। उसे मैं कर ही रहा हूँ। इसलिये इनके आग्रहसे मैं अपने स्वार्थका क्यों नाश कर ? जो होना होगा, वह भले ही हुआ करे, पर मैं तो अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करूँगा।" . राजा अपने मनमें ऐसा ही विचार कर रहे थे, कि इतनेमें कानोंमें हिलते हुए कुण्डल पहने, सब अंगोंमें सुहावने अलङ्कार घारण किये हुए एक दिव्य वेशधारी देव वहाँ प्रकट होकर बोले,—“हे राजन् ! तुम धन्य हो। हे वीरजनोंमें शिरोमणि! तुम्हारे जीवनजन्म सुफल हो - गये; क्योंकि आज ईशान-देवलोकमें इन्द्रने सभामें बैठे हुए तुम्हारे निर्मल गुणोंकी बड़ी प्रशंसा की थी। तुम्हारी वह बड़ाई मुमसे नहीं सही गयी और मैं तुम्हारी परीक्षा लेनेके लिये यहाँ चला आया। इसके बाद जंगल में रहनेवाले इस कबूतर और इस बाज़के शरीरमें मैंने प्रवेश किया, क्योंकि इनमें पहलेसेही वैर था।" देवने इतनाही कहा था, कि राजा पूछ बैठे,-- "हे देव ! इन दोनों पक्षियोंमें परस्पर वैर किस लिये हुआ ? मुझे यह बात जाननेका बड़ा कौतूहल हो रहा है, इसलिये मुझसे कह सनाइये।" तब देवने कहा,- .. ___"किसी ज़मानेमें इसी नगरमें सागर नामका एक बनियाँ रहता था। .. उसकी स्त्रीका नाम विजयसेना था। उसके धनदत्त और नन्दर नामके दो पुत्र थे। क्रमशः बढ़ते-बढ़ते वे जवान हो गये और बनज-व्योपार करनेको तैयार हुए। एक दिन वे दोनों, मां-बापकी आना ले, बहुतसे आदमियोंका काफ़िला संग लेकर, व्यापार करनेके लिये नागपुर नामक नगरमें आये। वहाँ व्यापार करते हुए उन्हें दैवयोगसे किसी तरह एक बड़े दामोंवाला उत्तम रत्न हाथ लग गया। इसके बाद जब वे अपने नगरकी ओर लौटने लगे, तब उस रत्नके लोभसे एक दूसरेको मार डालनेकी ताकमें लगे / रास्तेमें एक नदी पड़ती थी। उसीके पार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust