SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / उतरते-उतरते दोनोंमें विवाद होने लगा। एकने कहा, 'यह मनोहर रत्न मेरा उपार्जन किया हुआ है। दूसरेने कहा, "नहीं, मेरा उपार्जन किया हुआ है। तुम व्यर्थ ही लोभ क्यों करते हो ? इसी प्रकार विवाद / करते हुए वे दोनों क्रोधमें आकर वहीं युद्ध करने लगे। लड़ते-लड़ते वे उसी नदीमें गिर पड़े और आर्तध्यानके साथ मृत्युको प्राप्त हुए। वे ही दोनों मरकर इस जंगलमें कबूतर और बाज़ हुए हैं। महाराज मैंने इन दोनोंको एक जगह इकट्ठे होकर लड़ते देखा, इसीसे इनपर अपना असर डाला। __ यह कह, राजाकी प्रशंसा कर, वह देवता अपने स्थानको चले गये / राजा भी अक्षत शरीर वाले हो गये / इसके बाद सभासदोंने राजा मेधरथसे पूछा,-"हे स्वामी ! ये देवता कौन थे ? और इन्होंने बिना किसी प्रकारके अपराधके ही इतनी माया फैलाकर आपको प्राण-सङ्कटमें क्यों डाल रखा था ?" राजा मेघरधने कहा, हे सभासदो! अगर तुम्हारे मन में इस बातके जाननेका कौतूहल हो, ती जी लगाकर सुनो, - ____ "इस भवके पूर्व, पाँचवे भवमें, मैं अनन्तवीर्य नामक वासुदेवका बड़ा भाई अपराजित नामक बलदेव था। उस भवमें दमितारि नामक प्रतिवासुदेव मेरा शत्रु था। मैंने उसको पुत्रीका हरणकर उसे जानसे मार डाला था। इसके बाद वह संसार-रूपी अरण्यमें भ्रमण करता हुआ, इसी भरत-क्षेत्रके अष्टापद-पर्वतके पास एक तपस्वीका पुत्र हुआ। वहाँ अज्ञान-तप कर, आयुष्यका क्षय होने पर, मृत्युको प्राप्त हो कर, वह ईशान-देवलोकमें जा, सुरू' नामका देव हुआ है। जब इन्द्रने सभामें मेरी प्रशंसा की, तब पूर्व भवके वैरके कारण, इस देवको मेरी बड़ाई अच्छी न लगी और यह मेरी परीक्षा लेनेके लिये यहाँ आया। इसका 5 जो कुछ नतीज़ा हुआ, वह तुम लोग देख ही चुके हो।" यह सुनकर सब सभासदोंको बड़ा अचम्भा हुआ / उसी प्रकार उन दोनों पक्षियों को अपना और उस देवताका वृत्तान्त सुनकर जाति P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy