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________________ N पञ्चम प्रस्ताव। 'गुरुका सुनाया हुआ बाघका यह वृत्तान्त सुन राजाको वैराग्य - उत्पन्न हो आया और उन्होंने अपने पुत्रको गद्दी पर बैठाकर गुरुसे , दीक्षा ले ली। वे हरिपाल राजर्षि संयमका पालन करते हुए सौधर्मकल्पमें देवत्वको प्राप्त हुए। ___ निषाद-वानरी-कथा समाप्त / "जैसे वह निषाद जीवहिंसा करके नरकको प्राप्त हुआ, वैसेही और जीव भी, जो पाप करते हैं, पापके प्रभावसे नरकको प्राप्त होते हैं। इस लिये हे बाज़! तुमको भी जीवहिंसासे एकदम बाज़ आना चाहिये। यह सुन, उस श्येन (बाज़)पक्षी ने मेघरथ राजासे कहा, "हे राजन् ! आपही सुखी हैं; क्योंकि आप इस प्रकार धर्म और अधर्मका विचार कर सकते हैं। यह कबूतर तो मेरे डरसे भागा हुआ आपकी शरणमें चला आया। अब आपही कहिये, क्षुधारूपिणी राजसीका सताया हुआ मैं किसकी शरणमें जाऊँ ? हे राजन् यदि आप सत्पुरुष हैं और किसी प्राणीकी बुराई करना नहीं चाहते, तो मैं भी भूखसे पीड़ित हो रहा हूँ,. इसलिये हे दयालु! मेरी आत्माकी भी रक्षा कीजिये। मैं भी भले-बुरे कर्मों की पहचान कर सकता हूँ, पर इस समय भूखसे बे तरह सताया हुआ हूँ, इसलिये क्या कर सकता हूँ? कहा भी है, कि- .. चक्षुः श्रोत्रललाटदीनकरणी वैराग्यसम्पादिनी // बन्धूनां त्यजनी विदेशगमनी चारित्रविध्वंसिनी। सा मे तिष्ठति सर्वभूतदमनी प्राणापहारी क्षुधा // 1 // विवेको हीया धर्मो, विद्या स्नेहश्च सौम्यता / प्रतिपन्नमपि प्रायो, लुप्यते चुन्निपीडितः / इत्यर्थे नीतिशास्त्रोक्तो, दृष्टान्तः श्रयतां प्रभो // 3 // " .. . अर्थात्---"जो क्षुधा, रूपका नाश करनेवाली, स्मृतिका हरण करनेवाली, पाँचों इन्द्रियों / प्राकर्षण करनेवाली, आँख-कान और P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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