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________________ 218. श्रीशान्तिनाथ चरित्र। परिग्रह, कषाय और विषयोंमें फँसा हुआ, कृतघ्न, निर्दय, पापी, परद्रोही, रौद्रध्यानमें तत्पर और र मनुष्य नरकमें ही जाता है।" - "इसके सिवा है राजन् ! प्रसंगतः दूसरी दो गतिको कौन प्राप्त / होता है उनके लक्षण भी सुनो। . . . 'पिशुनागोमतिश्चैव, मित्रे शाट्यरतः सदा / वार्त-ध्यानेन जीवोऽयं, तिर्यग्गतिमवाप्नुयात् // 1 // मार्दवार्जवसम्पन्नो, गतदोषकपायकः। : . न्यायवान् गुणगृह्यश्च, मनुष्यगतिमागमेत् // 2 // अर्थात्-"पिशुन ( चुगलखोर ), पाप-मति, मित्रके साथ सदा कपट करनेवाला और आर्तध्यान करनेवाला मरकर तिर्यगतिको प्राप्त होता है। जो मृढ़ता और ऋजुतासे सम्पन्न होता है, पिसके दोष और कषाय नष्ट हो चुके हैं तथा जो न्यायवान् और गुणयाही होता है, वह प्राणी मरकर फिर मनुष्यगतिको प्राप्त होता है।' यह सुन, राजाने फिर पूछा,-“हे प्रभो ! उपर्युक्त बाघ मनुष्यकी / सी वाणी क्यों बोलता था ? उसने आदमीकी ही बोलीमें मुझे उस निषादको मारनेसे रोका था।" सूरिने उत्तर दिया,-"हे राजन् ! उसका कारण यह है / सुनिये,-"सौधर्म नामक देवलोकमें शक-इन्द्रके एक सामानिक देवता हैं। उनकी प्राणप्रिया देवी, स्वर्गसे च्युत होकर कहीं मनुष्य भवमें उत्पन्न हुई। तब उस देवाङ्गनाके आत्मरक्षक देवताओंने उस देवीके स्वामीसे पूछा,–'हे स्वामी ! इस विमानमें देवीके रूपमें कौन उत्पन्न होगा ?' इस पर देवताओंने कहा,-. 'अमुक वनमें एक वानरी है। वही मरकर यहाँ आयेगी।' यह सुनकर उन आत्मरक्षक देवोंमेंसे एक बाघका रूप धारण कर उस वानरीकी परीक्षा करनेके लिये यहाँ आया हुआ था। इसीलिये वह दिव्य-शक्ति-सम्पन्न व्याघ्र मनुष्यकीसी वाणी बोलता था। उस व्याघ्रने वानरी और निषादके साथ खूब वाद-विवाद किया था और उन्हें कई दृष्टान्त भी सुनाये थे।" . * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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