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________________ worrowwnwar Cameramananmrammar aamanaanawr. पञ्चम प्रस्ताव। 210 बाघने कहा,-"इस उद्यानमें एक बड़े भारी ज्ञानी आचार्य आये हुए हैं। . वे ही यह सब हाल बतलाते हैं। आप उन्हींसे जाकर यह प्रश्न करें।" यह कह, वह बाघ चला गया। राजाने उस निषादको छुटकारा देकर अपने राज्यसे निकाल बाहर कर दिया। इसके बाद राजा, गुरूके आगमनका हाल सुनकर, उद्यानमें आये। वहाँ अनेक साधुओंसे घिरे हुए आचार्य महाराजको देख, राजाने उन्हें बड़ी भक्ति के साथ प्रणाम किया और उनके बाद क्रमशः और सब साधु-. ओंकी भी वन्दना की। इसके बाद राजाने गुरुके सामने हाथ जोड़े हुए पूछा,-"आप अपने निर्मल ज्ञानचक्षुओंसे सब कुछ जानते हैं / इसीलिये मैं आपसे पूछता हूँ, कि वह वानरी मरकर. क्या हुई ?" गुरुने कहा, "हे राजन् ! वह शुभ ध्यानके वश मृत्यु पाकर स्वर्गको गयी है। आगमशास्त्रमें कहा है : 'तवसंजमदाणरो, पयइए भद्दो किवालु अ। . गुरूवयणरो निच्चं, मरिडं देवेस जाएइ / / 1 / / ' . अर्थात् -- 'जो तप, संयम और दान में निरत रहता है, प्रकृतिसे है। भद्र होता है, कृपालु होता है और निरन्तर गुरुके वचनो में अनुरक्त रहता है, वह मरकर देवताओंके यहाँ जन्म लेता है / ' * यह सुन राजाने कहा, "हे भगवन् ! जो जाति और कर्म . दोनों ही से महा नीच और बड़ा भारी पापी है, वह निषाद मरकर कहाँ जायेगा?" सूरिने कहा,-"इस पापीको नरकके सिवा ओर कहीं . ठौर-ठिकाना नहीं होगा। कहा भी है, कि-- जीवहिंसामृषावाद-स्तैन्यान्यस्त्रीनिषेवनैः। -: परिग्रहकषायैश्च, विषयैर्विवशीकृतः // 1 // . कृतघ्नो निर्दयः पापी, परद्रोहविधायकः। रौद्रध्यानपरः क्रूरो, नरो नरकमागमेत् // 2 // ' . अर्थात्- "जीवहिंसा, असत्य-संभाषण, चोरी, परस्त्रीगमन, . 28 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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