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________________ 220 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। unnan ललाट पर दीनता ला देनेवाली, वैराग्यको उत्पन्न करनेवाली, भाईबन्धुओंको छुड़ानेवाली, विदेशमें जानेको लाचार करनेवाली, चारित्रको चौपट करनेवाली, सब प्राणियोंको दमन करनेवाली, और प्राणोंका नाश करनेवाली है, वहीं इस समय मुझे सता रही है। तुधासे पीड़ित प्राणियोंको विवेक, लज्जा, दया, धर्म, विद्या, स्नेह, सुन्दरता और सत्त्व (पराक्रम) नहीं रह जाता। जो भूखा होता है, वह अकसर अपनी की हुई प्रतिज्ञाओंको भी तोड़ देता है। हे प्रभो ! इस विषयमें एक दृष्टान्त नीतिशास्त्रमें कहा हुआ है, उसे सुनिये। ___ यह कह, उस बाजने मेघरथ राजाको नीचे लिखा हुआ दृष्टान्त कह सुनाया :_ 'केर के * जङ्गलोंसे भरे हुए निर्जल मरुदेशमें एक कुआँ था / उसमें प्रियदर्शन नामका एक साँप रहता था। उस कुएँ में पानीके पासही एक बिल था, जिसमें वह रहता था और निरन्तर मेंढक आदि जीवोंको मार- 4 कर खाया करता था। वहीं रहते-रहते उसकी गङ्गदत्तनामक एक मेंढक से गाढ़ी दोस्ती हो गयी। साथही उसी कुएँ में रहनेवाली और मीठे वचन बोलनेवाली चित्रलेखा नामकी मैनासे भी उसकी ख़ासी मित्रता हो गयी। इस प्रकार परस्पर प्रीतिका व्यवहार करते हुए उन लोगोंने कुछ दिन बड़े सुखसे बिताये। इसके बाद, वहाँ एक बार बारह वर्षकी अनावृष्टि हुई, जिससे उस कुएँ का भी पानी सूख गया और पानीमें रहनेघाले सब जीव मर गये / अब तो उस सांपके खाने-पीनेकी भी मुश्किल आ पड़ी। गङ्गदत्त नामक वह मेंढक तो कीचड़-मिट्टी ही खा-खाकर दिन बिताने लगा। एक दिन साँपने मान अपमानकी बात भूलकर गङ्गदत्तसे कहा, "हे मित्र ! आजकल तो मैं बड़ी तकलीफ़में हूँ।" गङ्गदत्तने पूछा, "क्यों, कैसी तकलीफ है ?" सर्पने कहा,"खाने-पीने- र की तकलीफ मुझे बेहद सता रही है। कहा भी है,8 एक जगली वृक्ष। .. . ... ... ... ... ...... P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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