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________________ पश्चम प्रस्ताव / / उपकारिण विश्वस्ते, साधुजने यः समाचरति पापम् / तं जनमसत्यसन्धं, भगवति वसुधे ! कथं वहसि ? // 1 // अर्थात्- ''उपकार करनेवाले और विश्वासी सज्जनोंके साथ जो पापाचरण करते हैं , उन असत्य प्रतिज्ञावाले पुरुषोंका बोझ, हे पृथ्वी ! तू क्यों ढोती है ?" ____ यही विचार कर उस सांपने फिर अपने मनमें सोचा,- " इस समय इस ब्राह्मणके प्राणोंपर आ बनी है, इसलिये मैं इसके उपकारका कुछ बदला दूं, तो इसके ऋणसे छुटकारा पा जाऊँगा।" ऐसा सोच उसके उपकारोंको याद करता हुआ वह साँप बगीचे में आया और वहाँ सखियोंके साथ खेलती हुई राजकुमारीको देख, बताओ के गुच्छेके अन्दरसे उसे काट खाया। तुरतही वह राजकुमारी व्याकुल होकर छटपटाती हुई ज़मीन पर गिरकर बेहोश हो गयी। यह देख, सखियोंने जाकर राजाको ख़बर दी। इस ख़बरको पातेही राजा अत्यन्त शोकातुर और दुःखसे अधीर होकर विलाप करने लगे,- "हाय ! यह क्या हुआ ! अभी तो एकही दुःखके समुद्रसे पार नहीं हुआ कि इतने में दूसरा आ पहुँचा ? अब मैं क्या करूँ ?" ऐसा विचारकर, राजाने तत्काल अनेक मन्त्रवादियोंको बुलाया। वे सब उसकी लड़कीकी झाड़-फूंक करने लगे; पर किसीका कुछ असर नहीं हुआ। तब एक मन्त्र जाननेवालेने राजासे कहा, "हे राजा ! मुझे निर्मल ज्ञान प्राप्त है। उसीके बलपर मैं यह समझ रहा हूँ, कि आपने जिस ब्राह्मणके बधकी आज्ञा दी है, वह बिलकुल निर्दोष है। उसका सञ्चा-सचा हाल यों है- किसी समय इस दयालु ब्राह्मणने जङ्गलके कूप मेंसे साँप, बानर और बाघको बाहर निकाला। इसके बाद इसने एक सुनारको भी बाहर निकाला। उस समय सांप वगैरहने इस ब्राह्मणसे कहा था, कि तुमने हम लोगोंका बड़ा उपकार किया है, इसलिये किसी दिन मथुरामें आना। यह कह, वे अपने-अपने स्थानको चले गये और यह ब्राह्मण भी सब तीर्थोंसे घूमता-घामता इस बार मथुरामें आ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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