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________________ Arvvv. 212 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। पहुचा / आनेपर उस बन्दरने तो इसे उत्तमोत्तम फल देकर सम्मानित किया और बाधने आपके पुत्रको मारकर उसके कुल गहने इसे लाकर दिये। उन्हें लिये हुए यह सीधा-सादा ब्राह्मण उस सुनारसे मिलने गया , और उसे बाघके दिये हुए गहने दिखाये। गहनोंको देख, उन्हें पहचान कर, उस कृतघ्न सुनारने आपको ख़बर दे दी। इसी पर आपने ब्राह्मणको चोर और हत्यारा समझकर मार डालनेका हुक्म दे दिया / दैवयोगसे जल्लादोंको, वध करनेके लिये उस ब्राह्मणको ले जाते देखकर, . पूर्वोक्त सर्पने उसे पहचाना और उसकी भलाई की बात याद कर, उसे : . . छुड़ानेके इरादेसे लताके अन्दरसे आपकी पुत्रीको डंस दिया। इसलिये, हे महाराज ! यदि आप उस ब्राह्मणको छोड़ दें, तो आपकी लड़की अवश्य ही जी जायेगी।" .. यह सुन, राजाने कहा- अच्छा, मुझे ऐसी कोई बात बतलाओ, जिससे मुझे इस बातकी सचाई का भरोसा हो / " यह सन, उस मन्त्रवादीने उस सर्पको राजपुत्रीके शरीरपर उतारा। उसने मन्त्रवादीकी कही हुई सब बातें स्वीकार कर लीं, जिससे राजाको पूरी दिल जमई हो गयी और उन्होंने उस ब्राह्मणको छुटकारा दे दिया। उसे छूटते देख, साँपने राजकुमारीके डंकपरका विष चूस कर खींच लिया, जिससे वह तुरत भली चङ्गी हो गयी। इसके बाद मन्त्रवादीने उस ब्राह्मणसे कहा,-हे विप्र! इसी साँपने आपकी जान बचा दी।" यह सुन, उस ब्राह्मणने कहा,- "अहा ! इस संसारके प्राणियोंकी गति कैसी विचित्र है, ज़रा देखिये तो सही-जो बड़े ही क्रूर प्राणी कहे जाते हैं, उन्होंने तो कृतज्ञता दिखलायी और जो क्रूर नहीं कहा जाता, उसीने हर दर्जे की कृतग्नता-अहसानफ़रामोशी--की।" यह कह, उस ब्राह्मणने फिर कहा,. "दो पुरिसे धरुं धरा, अहवा दोहिं पि धारिया धरणी। उवयारे जस्स मई, उवयारं जो न. विम्हरई // 1 // / अर्थात् जिसकी मति उपकार में होती है-जो उपकारः करना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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