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________________ 21. श्रोशान्सिनाथ चरित्र। कर उस ब्राह्मणको खूब मज़बूतीसे बँधवा मँगवाया और विद्वानोंको बुलाकर पूछा,–“हे पण्डितो! इस मामले में मुझे क्या करना चाहिये ? " पण्डितोंने कहा,-"महाराज! भलेही कोई जातिका ब्राह्मण , और वेद-वेदाङ्गका जाननेवाला हो; पर उसने यदि मनुष्यकी हत्याकी हो, तो राजाको अवश्य उसका वध करना चाहिये। इससे राजाको पाप नहीं लग सकता।" पण्डितोंकी यह बात सुन, राजाने अपने सेवकोंकों उसका वध करनेका हुक्म दे दिया / राजसेवक उसे गधेपर चढ़ाये, उसके सारे शरीरमें रक्त चन्दनका लेप किये हुए, उसे वध्य अपने मनमें सोचा,-"ओह ! मेरे पूर्व कर्मोके दोषसे यह मेरी कैसी अवस्था हुई ? ओह ! उस दुष्ट सुनारने मेरे साथ कैसी कृतघ्नता की ? इधर उस वानर और बाघने मेरे साथ कैसी कृतज्ञता प्रकट की ?" ऐसा विचार करने और उस बन्दरकी यात याद आ जानेसे उस ब्राह्मणके मुंहसे अनजातमें ये दो श्लोक निकल पड़ेः व्याघ्रवानरसाणां, यन्मया न कृतं वचः / ते नाहं दुविनीते न, कलादेन विनाशित; // 1 // वेश्याक्षाः ठक्कुराश्चौरा, नीरमार्जारमर्कटाः / जातवेदाः कलादश्च, न विश्वास्या इमे क्वचित् // 2 // अर्थात्--"बाघ, वानर और साँपकी बात मैंने नहीं मानी, इसी लिये मैं इस दुष्ट सुनारके करते मारा गया ! सच है- वेश्या ? इन्द्रिय, ठाकुर, चोरे, जल, बिल्ली, बन्दर, आग और सुनार-इनका कभी विश्वास करना ठीक नहीं है।" वह ब्राह्मण बार-बार इन दोनों श्लोकोंको बोल रहा था। इसलिये उसकी आवाज़से उसे पहचान कर उसी जगह रहनेवाले उस साँपने .. (जिसे ब्राह्मणने कुएँसे बाहर निकाला था ) अपने मनमें विचार किया, "ओह! उस दिन जिस ब्राह्मणने मुझे कुएँसे बाहर निकाला था, वही महात्मा आज सङ्कट में पड़े हुए मालूम होते हैं। शालमें कहा हुआ है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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