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________________ 206 : पञ्चम प्रस्ताध / उस दोघायु होनेका आशीर्वाद दिया और मथुरा-नगरीके अन्दर आ; उस सुनारका घर पूछते-पूछते वहाँ आ पहुँचा। उस समय उसे दूरसे आते देख, वह सुनार कुछ देरतक तो उसकी ओर देखता रहा; परं फिर तुरत ही नीची नज़र किये हुए अपना काम करने लगा / ब्राह्मण ने उसके पास आकर पूछा,- "क्यों साहुजी ! क्या तुम मुझे पहचानते हो ?" उसने कहा,- "मैं तुम्हे एकदम नहीं पहचानता / " यह सुन, उस ब्राह्मणने कहा,-- "अरे भाई ! मैं वही ब्राह्मण हूँ, जिसने तुम्हें उस जंगलमें कुएँसे बाहर निकाला था। आज मैं तुम्हारे घर अतिथि होकर आया हूँ।" यह सुन, उस सुनारने बैठेही बैठे ज़रा सिर हिला कर उसे प्रणाम किया और बैठनेके लिये आसन देते हुए कहा,"विप्रजी ! कहिये, मैं आपकी क्या सेवा करूं ? " इस पर उस ब्राह्मण ने बाधके दिये हुए गहनोंको उसे दिखा कर कहा,- “भाई मेरे एक यजमानने ये गहने मुझे दिये हैं। तुम्हीं इनका ठीक-ठीक दाम लगा सकते हो। इसलिये तुम इन्हें ले लो और मुझे इनका उचित मूल्य दे दो।" यह कह, गहनोंको उसीके पास रखकर वह ब्राह्मण नदीमें __ स्नान करने चला गया। इसी समय उस सुनारने वस्तीमें यह ड्योड़ी फिरती हुई सुनी, कि-"आज राजकुमारको मारकर कोई उनके सारे - गहने चुरा ले गया है। जो कोई उस आदमीको कहीं देख पाये, वह राजाको उसका पता दे ; क्योंकि राजा उस द्रोहीको प्राण दण्ड दिये बिना न रहेंगे / " यह सुनकर, उस सुनारके मनमें शङ्का हुई / उसने सोचा,-"ये गहने तो मेरे ही गढ़े हुए हैं। ज़रूर इसी ब्राह्मणने गहनों के लोभसे राजकुमारको मार डाला है और उनके गहने लिये हुए मेरे पास आ पहुँचा है; पर यह न तो मेरा कोई भाई है, न नाता-गोता, फिर मैं इस के लिये अपनी जानको क्यों बलामें फँसाऊँ ? " ऐसा विचार कर उसने राजाके द्वार पर जा, नगाड़े पर चोट दी और फिर उनके पास पहुँच कर, गहनोंको उनके हवाले करते हुए कहा,- "महाराज ! इन गहनों का चोर एक ब्राह्मण है।" यह सुन, राजाने अपने सिपाहियोंको भेज Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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