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________________ we muninni 206 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। लिये तुम्हें भी इस कामसे हाथ खींच लेना चाहिये / यदि कोई तुम्हारा एक ही पर नोच ले, तो तुम्हें कितना कष्ट होगा ? वैसेही औरोंको भी पीड़ा होती है, इसका भी तो विचार करो। और देखो, इस कबूतरका मांस खानेसे तुम्हें क्षण भरकीही तृप्ति होगी; पर यह विचारा तो सदाके लिये जान-जहानसे हाथ धो बैठेगा? सोच देखो, पंचेंद्रिय जीवों का वध करनेसे दुष्टात्मा प्राणियोंको नरकमें जाना पड़ता है / कहा है, कि "श्रूयते जीवहिंसावान्, निपादो नरकं गतः / दयादिगुण संयुक्ता, वानरी त्रिदिवं गता // 1 // " अर्थात्-- "शास्त्रमें कथा आयी है, कि जीवहिंसा करनेवाला निषाद (व्याध) नरकमें गया और दयादि गुणोंसे युक्त होने के कारण वानरी ( बँदरी ) स्वर्गमें गयी।" यह सुन, उस बाजने मेघरथ राजासे पूछा, “हे राजन् ! उस नि. षाद और वानरीकी कथा मुझे कह सुनाइये / " इसपर राजाने कहा, Asho biheENTOR h an 5 निषाद-वानरीकी कहानी .. या७ ग्या ' इस पृथ्वीपर सैकड़ों वन्दरोंसे भरी हुई 'हरिकान्ता' नामकी एक नगरी है। उस पुरीमें बन्दरों का पालन-पोषण करनेमें तत्पर 'हरिपाल' नामके राजा रहते थे। उसी नगरीमें एक निषाद रहता था, जो बड़ा ही क्रूर, यमदूत सा निर्दय और कृतघ्नोंका सिरमौर था। वह पापी सदैव वनमें जाकर वराह, शूकर और हरिण आदि अनेक जीवों का वध किया करता था। उसी पुरीके पास एक वनमें राजाकी कृपासे बहुतसे बन्दर रहा करते थे। उनमें हरिप्रिया नामकी एक बन्दरी (वानरी ) भी रहती थी, जो कभी मांस नहीं खाती और दयादाक्षिण्य आदि गुणोंसे सुशोभित थी। एक दिन वही निषाद, हाथमें Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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