SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चम प्रस्ताव / 200 खङ्ग लिये, मृगयाके निमित्त उसी वनमें आया। इसी समय उसने अपने सामनेसे एक भयंकर बाघको आते देखा। उसे देखते ही वह डर गया और पासके ही एक पेड़पर चढ़ गया। उसपर एक क्रुर स्वभाव वाली बन्दरी मुह फाड़े बैठी हुई थी। उसे देख, वह फिर डर गया। उसे बाघके डरसे भागकर आया हुआ जान, बन्दरीने अपना मुख प्रसन्नता-पूर्ण बना लिया। यह देख, निषादके जी-में-जी आया और वह दिलजमईके साथ उसके पास बैठ रहा। बंदरी उसे भाईसा मानकर उसके सिरके केश सहलाने लगी। वह भी उसकी गोदमें सिर रखकर सो गया। इसी समय वह बाघ उस वृक्षके नीचे आया और बन्दरीकी गोदमें सिर रखकर सोये हुए उस मनुष्यको देखकर बन्दीसे कहने लगा,-"अरी बावली! इस संसारमें कोई किसीके किये हुए उपकारको नहीं मानता और मनुष्य तो खासकर ऐसे होते हैं। इस विषयमें मैं तुम्हें एक दृष्टांत सुनाता हूँ, सुनो,. "किसी गांवमें शिवस्वामी नामका एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह तीर्थयात्रा करनेके इरादेसे अपने घरसे बाहर हुआ और देशदेशान्तरोंमें घूमता हुआ एक बड़े भारी जङ्गलमें आ पहुँचा। वहाँ प्याससे छटपटाता हुआ, वह पानीकी खोजमें इधर-उधर घूमता-फिरता एक कुएके पास आ पहुँचा। यह देख, उसने घासकी रस्सी बटकर उसीके सहारे कलसा ( घड़ा ) कुएमें लटकाया। उसी समय उस रस्सीके सहारे उस कुएँ मेंसे एक बन्दर बाहर निकला। यह देख उस ब्राह्मणने सोचा, कि चलो, मेरी मिहनत सफल हो गयी। यही सोचकर उसने फिर रस्सीमें घड़ा बांधकर नीचे लटकाया। इस बार कुएँ मेंसे एक बाघ और एक सांप निकल पड़े। उन्होंने उस ब्राह्मण को अपना प्राणदाता समझकर प्रणाम किया। इसके बाद उन तीनोंमें से वानरने, जो जाति-स्मरण-युक्त हुआ था, पृथ्वीपर अक्षरों में लिखकर ब्राह्मणको बतलाया, कि-हे द्विजदेव ! मै मथुरा-नगरीके पासका रहनेवाला हूँ। तुम कभी उधर मेरे पास आना, तो मैं तुम्हारी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy