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________________ . . . .. पञ्चम प्रस्तावें / .. 205 mimminminmitrininin हुआ और उसने अपने घर जा. पुत्रको राज्य पर बैठा, प्रिया सहित श्री घनरथ जिनेश्वरके पास आकर दीक्षा ले ली। इसके बाद दुष्कर तप कर निर्मल केवल-शान उपार्जन कर, कर्मरूपी मलका सर्वथा नाश कर, सिंहरथ मुनिने मोक्ष प्राप्त कर लिया। इधर मेघरथ राजा उद्यानसे लौटकर रानीके साथ-साथ घर आये। एक दिन वे सर्वारम्भ-परित्याग-पूर्वक, अलङ्कार आदिको दूर कर, पौषध-व्रत ग्रहण किये हुए पौषधशालामें योगासन मारे बैठे हुए राजाओं को धर्मदेशना कर रहे थे। इसी समय कहींसे उड़ता हुआ एक कबूतर जिसका शरीर काँप रहा था और जिसकी आखोंसे भय और चच.. लता टपक रहीथी, मनुष्यकीसी वाणीमें यह कहता हुआ, कि मैं आपकी शरणमें हूँ , राजाकी गोदमें आ गिरा। उस समय उस भयभीत पक्षी को देख, दयार्द्र होकर राजा मेघरथने कहा,- "भाई जब तुम मेरी शरणमें आ गये, तब तुम्हें कोई डर नहीं है / " राजाको यह बात सुन, वह पक्षी निर्भय हो गया। इतनेमें उसके पीछे-पीछे एक महाभयंकर और निर्दय बाज़ वहाँ आ पहुँचा और राजासे बोला,-"महाराज ! सुनिये / आपकी गोदमें जो कबूतर पड़ा हैं, वह मेरा आहार है, इस लिये उसे मेरे हवाले कीजिये- मुझे बेतरह भूख लग रही है।" यह सुन, राजाने कहा, "भाई ! मैं इस अपनी शरणमें आये हुए पक्षीको तुम्हें देना उचित नहीं समझता / क्योंकि पण्डितोंने कहा है, कि... ... .. "शूरस्य शरणायातो-हर्मणिश्च सटा हरेः / .... ... गृह्यन्ते जीवतां नैते-ऽमीषां सत्या उरस्तथा // 1 // " . - अर्थात् -- शूरवीरकी शरणमें आये हुए प्राणीको दूसरा उसी प्रकार जीते-जी नहीं ग्रहण कर सकता, जैसे शरीरमें प्राण रहते, कोई सर्पकी मणि, सिंहका केसर और सती स्त्रीका हृदय नहीं पा सकता।" - "साथ ही हे पक्षी! तुम स्वयं ही इस बातका विचार करो, कि औरोंकी जान लेकर अपनी जान बचाना, कितना बड़ा पुण्य-नाशक है। यह प्राणीको स्वर्गमें जानेसे रोकता है और नरकका कारण है। इस Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S..
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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