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________________ 200 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। का मुर्गा मेरे मुर्गे को हरा देगा, उसे मैं लाख अशपियाँ इनाम देगी। साथही जिसका मुर्गा हार जायगा, उससे मैं भी लाख अशर्फिया ले लूंगी।" यह सुनकर मनोरमा रानीने राजासे हुक्म लेकर अपनी. दासीसे अपना मुर्गा मँगवा लिया और उस गणिकाकी शर्त कबूल कर ली। दोनों मुर्गे आमने-सामने कर दिये गये- दोनों एक दूसरेसे गुथ गये / उस समय चोंच और पैरोंसे युद्ध करते हुए उन दोनों मुर्गो की सब सभासदोंने बड़ी प्रशंसा की। इतनेमें, तीर्थङ्कर होनेके कारण गर्भवासके ही समयसे तीनों कालका ज्ञान रखनेवाले राजा घनरथने अपने पुत्र मेघरथसे कहा,-"पुत्र ! ये दोनों मुर्गे चाहे जितनी देरतक लड़ते रहें, पर इनमेंसे कोई हार नहीं सकता।" यह सुन मेघरथकुमार ने पूछा,- "इसका क्या कारण है ? " तब तीनों शानके धारण करने घाले राजाने कहा,___- "इसी जम्बूद्वीपमें, भरतक्षेत्रकेही अन्दर, रत्नपुर नामक नगरमें. धनदत्त और सुदत्त नामके दो बनिये रहते थे, जिनमें परस्पर बड़ी / मित्रता थी। वे दोनों बैलों पर माल लादे, भूख-प्यासकी मार सहते हुए, एकही साथ बानेज-व्यौपार करते चलते थे; परन्तु दोनोंही मिध्यात्वके कारण मूढ़ हो रहे थे, इसलिये कमती माप-तौल करके लोगों को खूब ठगा करते थे। ऐसा करने पर और बहुत कोशिश करते हुए भी वे बहुत कम माल पैदा करते थे। एक समयकी बात हैं, कि उन दोनोंके दिलोंमें गांठ पड़ गयी और वे परस्पर लड़ाई झगड़ा करते, एक दूसरेको मारते-फूटते हुए आर्तध्यानसे मृत्युको प्राप्त होकर सुवर्णकूला नदीके तौर पर कांचन-कलश और ताम्रकलश नामके दो जंगली हाथी हुए और अलग-अलग झुण्डोंके सर्दार बन बैठे / वहाँ भी वे अपना झुण्ड बढ़ानेके लिये लोभके मारे परस्पर युद्ध करते हुए मर गये और अयोध्यामें नन्दिमित्रके घर पाड़े ( भैसके बच्चे ) हुए। उन्हें दो राजकुमारोंने ख़रीदा और परस्पर लड़ा दिया / उसी युद्ध में मरकर वे उसी नगर में बकरे होकर पैदा हुए / इस जन्ममें भी उनका युद्ध जारी रहा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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