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________________ पञ्चम प्रस्ताव / ranna.moomarwanamaraamaaru.aamaaaaaaaaaaaaaamwww और वे सींगसे एक दूसरेको चोट करते हुए मर कर क्रोधके मारे लाललाल नेत्रवाले मुर्गे के रूपमें उत्पन्न हुए / इसलिये, बेटा! इन दोनोंमेंसे , कोई हारनेवाला नहीं हैं। " . . . . . . . . . . . . : ... ____ यह सुन, मेघरथकुमारने भी अपने अवधिज्ञानसे इस बातकी यथार्थता जान ली और पितासे कहा,-'पिताजी ! ये दोनों मुर्गे परस्पर एक ईर्ष्या रखते हैं, यही नहीं है, इन पर दो विद्याधरोंकी छाया भी है। इसका कारण मैं आपको बतलाता हूँ, सुनिये:- ...... __ "इसी भरतक्षेत्रमें वैताढ्य पर्वतकी उत्तर-श्रेणीमें सुवर्णनाभ नामका नगर है। उसमें गरुड़वेग नामक विद्याधरोंका.राजा रहता था। उसके चन्द्रतिलक और सूरतिलक नामके दो पुत्र थे / एक दिन उन दोनोंने आकाशगामिनी विद्याके सहारे शाश्वती जिनप्रतिमाओंकी वन्दना करनेके निमित्त मेरु पर्वतके शिखरकी सैर की। वहाँ सोनेकी शिलापर बैठे हुए सागरचन्द्र नामक चारण श्रमण मुनीश्वरको देख, दोनों राजकुमारोंने बड़े हर्षके साथ उनकी वन्दना की। इसके बाद उन्होंने मुनिसे अपने पूर्व भवका वृत्तान्त पूछा। मुनिने ज्ञानसे सब हाल मालूम कर कहा,- . . -- “धातकी खण्ड नामक द्वीपके ऐरवत-क्षेत्रमें वज्रपुर नामक एक नगर है। वहाँ अभयघोष नामके एक राजा रहते थे। उनकी रानीका नाम सुवर्ण-तिलका था। उन्हींके गर्भसे उत्पन्न राजाके जय और विजय नामके दो पुत्र थे। उन्हीं दिनों सुवर्ण नगरके स्वामी शंख नामक राजाकी रानी पृथ्वीदेवीके गर्भसे उत्पन्न पृथ्वीसेना नामकी एक सुन्दरी राजकुमारी थी। उसे शंखराजाने राजा अभयघोषके पास स्वयं वराके रूपमें भेजा। राजा अभयघोषने बड़ी खुशीसे उसके साथ विवाह - कर लिया। एक बार वसन्त ऋतुमें राजा, फूले-फूले फूलों की बाहरसे मनोहर दिखाई देनेवाले उद्यानमें रानीके साथ क्रीड़ा करनेको गये / वहाँ रानी पृथ्वीसेनाने इधर-उधर घूमते-फिरते दान्तमदन नामक एक - मुनीको देखा / उन्हींसे धर्म-देशना श्रवण कर, प्रतिबोध प्राप्त कर; P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust 24
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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