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________________ .. पश्चम प्रस्ताव। ... इसके बाद बड़े बेटेने प्रश्न कियाः- .. .... "किमाशीर्वचनं राज्ञां ? का शम्भोस्तनुमण्डमम् ? ह कः कती सुख दुःखानां ? पात्रं च सुकृतस्यकिम् ? " ....अर्थात्- "राजाओंको क्या कहकर आशीर्वाद दिया जाता है ? महादेवके शरीरका शंगार कौनसा है ? सुख-दुखका कर्ता कौन है ? पुण्यका ठीक-ठीक निवास किसमें है ?" . . / '.. यह सुन, और कोई उन्हें उत्तर नहीं देसका, इसलिये मेघरथही बोल उठे,-"जीवरक्षाविधिः। [अर्थात्-राजाओंको 'जीव'-तुम जिओ-ऐसा कहकर आशीर्वाद दिया जाता है। महादेवके शरीरका भूषण 'रक्षा' यानी राख है। सुखदुःखको कर्ता विधि, यानी विधाता है / और पुण्यका स्थान 'जीवरक्षाविधि' यानी जीवोंकी रक्षाका उपाय करना है।]" फिर मेघरथनेही प्रश्न किया,- . . . "सुखदा का शशांकस्य ? मध्ये च भुवनस्य कः ? - निषेधवाचकः को वा ? का संसार-विनाशिनी? . . . अर्थात्--"चन्द्रमाकी कौन सी वस्तु सुखदायिनी है ? भुवन के मध्यमें क्या है. ? निषेधवाचक शब्द कौनसा है ? और संसारका विनाश करनेवाली कौनसी वस्तु है ?" . इसका जवाब भी किसीसे देते न बना / तब राजा घनरथनेही कहा,- 'भावना' [अर्थात्-चन्द्रमाकी 'भा' यानी कान्ति सुख देने वाली है / 'भुवन' इस तीन अक्षरोंवाले शब्दके बीचमें 'व' हैं। निषेधवाचक शब्द है 'ना' / और संसारका नाश ‘भावना' ही करती है।] :: . इस प्रकार उन लोगोंने कुछ देरतक प्रश्नोत्तरोंसेही दिल बहलाया। इसी समय एक गणिका यहाँ आकर बोली,- “महाराज ! मेरे . पास यह जो मुर्गा है, वह किसी दूसरे मुर्गेसे हरगिज़ नहीं हार सकता। यदि किसीके मनमें अपने मुर्गे की ताकतका घमण्ड हो, वह अपना मुर्गा मेरे पास ले आये और मेरे मुर्गे के साथ लड़ाकर देख ले। जिस किसी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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