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________________ vw.r www.maa.ranewwwwwwra.www.www.www.aniwww....... श्रीशान्तिनाथ चरित्र। फल लाने जाता हूँ। यह सुन पुत्रने कहा;-"अच्छा, तो आज मैं साथ ही चलँगा।" यह सुन, पिताने लाख मना किया, तो भी वह पिता उसे पीते-पीछे चला ही गया। मालीने उसे अपने मालिकका पुत्र समझ कर प्रसन्न करनेके लिये नींबू और नारंगी आदि सुन्दर स्वादवाले फल लाकर दिया इसके बाद सेठ फूल ले, पुत्रके साथ ही घर लौट आया। उस दिन सेठने पर साथ ही स्नान, पूजन और भोजन आदि सभी कार्य किये। इसके अनन्तर बालक पाठशाला चला गया। दूसरे दिन मंगलकलश बडी हठकरके अकेला ही लानेके लिये बगीचेमें चला गया और मालीसे सुन्दर-सुन्दर फूल लेकर घर और श्राया। घर आकर उसने पितासे कहा,-"अब आजसे मैं ही प्रतिदिन बाग में जाकर फूल ले आया करूँगा, तुम घर ही रहकर धर्म-ध्यान किया करो।" सेठने उसकी यह बात स्वीकार कर ली। इसके बाद वह प्रतिदिन बगीचे जाकर फूल ले आने लगा और सेठ सुख पूर्वक देव-पूजा करने लगा। इसी अवसर में क्या क्या घटनाएँ हो गयीं अब उन्हींकी कथा सुनाता हूँ। सुनो,... भरत क्षेत्रमें चम्पा नामकी एक विशाल नगरी है। उसमें सुरसुन्दर नामके एक राजा रहते थे। उनकी रानीका नाम गुणावली था। एक दिन उसने स्वप्नमें अपनी गोदमें कल्पलता देखी / देखते ही वह झट पट उठ बैठी और अपने स्वामी से वह बात कह डाली / राजाने अपनी बुद्धिसे बिचार कर कहा,- इस स्वप्नके प्रभावसे तुम्हे एक सर्व-सुलक्षण पुत्री होगी।" यह सुन रानी बड़ी प्रसन्न हुई। इसके बाद समय पाकर रानीको एक लड़की हुई। राजाने उसका नाम त्रैलोक्यसुन्दरी रक्खा / धीरे धीरे बढ़ती हुई वह बालिका क्रमसे युवती हो गयी, युवावस्थाको पाकर वह मानों अतिशय लावण्य और सौभाग्यका आकार बन गयी। एक दिन अपनी उस मनोहर अंगोंवाली पुत्री को देखकर राजा अपने हृदय में उसके लिये वरकी चिन्ता करने लगे / इसी समय रानीने भी उनसे कहा,"स्वामी ! यह बालिका मेरे जीवनका आधार है / मुझमें ऐसी शक्ति नहीं, कि इसका विरह सहन कर सकूँ, इसलिये आप इसका विवाह किसी और स्थानम न कर इसी नगरमें सुबुद्धि नामक मंत्री-पुत्रके साथ कर दीजिये / वह इसक सर्वथा योग्य है / " स्त्री की यह बात सुन, राजा मन-ही-मन विचार करने लगे सच पूछो तो विवाहादिक मामलोंमें स्त्रियोंकी ही प्रधानता रहती है / " यह सोचकर उन्होंने सुबुद्धि नामक मंत्रीको बुलवा कर उससे बड़े आदरके साथ कहा "मन्त्रीजी ! मैं अपनी कन्या तुम्हारे पुत्रके साथ व्याह देना चाहता हुँ, इसलिए तुम शीघ्र इनके विवाहकी तैयारी करो।" .. .. यह सुन मन्त्रीने कहा,-"स्वामी! आप ऐसी अनचित बात क्या कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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