________________ / प्रथम प्रस्ताव / / हैं ? आप अपनी पुत्री किसी राजकुमारको दीजिये, मेरा पुत्र आपके योग्य नहीं है। कहा भी है, कि ययोरेव समं वित्त, ययोरेव समंकुलम् / . तयोमैत्री विवाहश्च, नतु पुष्ट-विपुष्टयोः // 1 // "जिन दो मनुष्योंकी धन-सम्पत्ति एकसी हो, कुल एकसा हो, उन्ही दोनोंमें परस्पर मैत्री या विवाह होना उचित है; परन्तु उनमेंसे यदि एक बलवान और दूसरा निर्बल हो, तो उनमे सम्बन्ध होना ठीक नहीं है / " ____मंत्रीकी यह बात सुन, राजाने फिर कहा,-"मन्त्री ! इस बारेमें तुम्हारे कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है। यह बात तो अब होकर ही रहेगी / इसमें कोई संशय न समझना / " सभासदोंने भी कहा, कि मंत्रीजी ! श्रापको राजाकी बात मान ही लेनी चाहिये। यही सब सुनकर मन्त्रीने, इच्छा न रहते हुए भी, राजाकी बात मान ली। _इसके बाद मंत्री, घर भा, हथेली पर सिर रखकर मन-ही-मन विचार करने लगा,- "हाय ! मेरी तो वही हालत हो रही है, कि एक ओर बाघ बैठा है, और दूसरी ओर नदी लहरा रही है / इधर उसके मुँहमें चले जानेका भय है; उधर नदीमें डूब जानेका / इसका कारण यह है, कि राजाकी पुत्री देवांगना की भाँति रूपवती है और मेरा पुत्र कोढ़के रोगसे पराभवको प्राप्त हो रहा है। फिर जान-बूझकर में इन दोनोंकी जोड़ी क्यों मिलाऊँ ? इसी तरहकी चिंताओं में मन्त्री खाना-पीना भी भूल गया। अन्तमें उसे यह याद आया कि, मेरी कुलदेवी बड़ी जागती देवी हैं। मैं उन्हींकी आराधना करूँ, तो मेरा मनोरथ सिद्ध हो जाये। ऐसा विचार कर, मन्त्रीने बड़ी विधिके साथ अपनी कुलदेवीकी आराधना की / उसकी आराधनासे प्रसन्न हो, देवीने प्रत्यक्ष प्रकट हो करके कहा,- "हे मन्त्री ! तू किस लिये मेरा ध्यान कर रहा है ? " मन्त्रीने कहा,- "माता ! तुम तो स्वयं ही सब कुछ जानती हो, तो भी जब पूछ रही हो, तो लो, कहे देता हूँ, सुन लो / मेरा पुत्र, दुष्ट कुष्ट-व्याधिसे पराभवको प्राप्त हो रहा है। तुम ऐसी कृपा कर दो, जिससे मेरा पुत्र इस रोगके पंजेसे छूट जाये।" इस पर देवीने कहा, - "पूर्व में किये हुए कर्मोके दोपसे जो व्याधि उत्पन्न हुई हो, उसे दूर करनेकी शक्तिं मुझमें नहीं है। इसलिये तुम्हारी यह 2P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust