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________________ प्रथम प्रस्ताव। " प्राणनाथ ! चिन्ता न कीजिए / इस लोक और परलोक में केवल धर्म ही मनुष्योंको वांछित फलका देनेवाला है / इसलिये आपको सुखी मनसे उसी धर्मका विशेष रूपसे पालन करना चाहिये। "इसपर सेठने कहा,- प्रिये ! मैं किस तरह धर्मका अाचरणं करूँ, वह तुम्ही बतलायो / "वह बोली- स्वामी ! देवाधिदेव श्रीजिनेश्वरजीकी पूजा करो, सद्गुरुकी भक्ति करो, सुपात्रोंको दान दो और सिद्धान्तके ग्रन्थोंका अध्ययन करो। इसप्रकार धर्म-ध्यान करते हुए यदि पुत्र लाभ हो जाय, तो अच्छी ही है, नहीं तो परलोकमें निर्मल और अख- . रिडत सुख तो अवश्य ही होगा।" . . . यह सुन, सेठने परम प्रसन्न होकर कहा,-"प्रिये ! तुमने बहुत ठीक कहा। भली भाँति पालन किया हुआ धर्म चिन्तामणि और कल्पवृक्ष के ही समान होता है।" इस प्रकार मनमें निश्चय कर, उस अच्छे विचारवाले सेठने मालीको बुलाकर देव पूजाके निमित्त फूल मँगवाये और उसे बहुत सा धन दान किया। इसके बाद वह प्रतिदिन सवेरे उठकर अपने बगीचेमें जाता और तुरन्तके खिले हुए फूल तोड़ लाकर उनसे अपने घरमें रखी हुई प्रतिमाका पूजन करता। इसके बाद नगरके मध्यमें बने हुए जिन-चैत्य (जैन मन्दिर) में चला जाता / उसके द्वारके भीतर प्रवेश करते समय नैपेधिकी आदि कहे जानेवाले दसों त्रिकोंका उचित रीति से ध्यान रखते हुए बड़ी भक्तिके साथ चैत्यवन्दन करता था। इसके बाद साधु श्रोंको वन्दना तथा विधिपूर्वक प्रत्याख्यान कर, वह उत्तम मुनियोंको दान देता था। इसी प्रकार सारा दिन और सारी रात, सब सुखको देनेवाले धर्म-कार्यों का ही अनुष्ठान करते रहने के कारण, शासनकी अधिष्ठात्री देवी उस सेठ पर प्रसन्न हो गयीं और उन्होंने उसे प्रत्यक्ष दर्शन देकर पुत्र-प्राप्तिका वरदान दिया / इस वरदानसे सेठ बड़ा ही प्रसन्न हुआ। इसके बादं पुण्यके प्रभाव तथा देवीके . _आशीर्वादसे उसी रातको सेटानीको गर्भ रहा और उसने स्वप्न में मंगल सहित सुवर्ण-पूर्ण कलश देखा / यह देखते ही वह जग पडी और इसे पुत्र प्राप्तिका .सगुन समझ कर हर्पित हुई / क्रमसे समय पूरा होने पर भली सायतमें उसके पुत्र पैदा हुा / उस समय उसके पिताने बडी धूमधामसे उत्सव किया ओर दीनहीन जनोंको स्वर्ण और रत्नोंका दान देकर, अपने सब स्वजनोंको इकट्ठा किया अरि सबके सामने ही स्वप्नके अनुसार उसका नाम मंगल-कलश रक्खा / धीरेधीरे बढ़ता और विद्याभ्यास करता हया वह लड़का क्रमशः आठ वर्षका हुअा / एक दिन मंगल कलशने अपने पितासे पछा,-"पिता! तुम सबेरे. ही उठ कर प्रतिदिन कहाँ चले जाते हो ? “उसके पिताने कहा,- मैं देव पूजनके लिए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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