________________ श्रोशान्तिनाथ-चरित्र / कपिलने यह बात स्वीकार कर ली / तब विनय तथा शीलमें उत्तम सत्यभामा राजाकी प्रियाके पास चली आयी और सुखसे रहने लगी। * एक दिन उसी नगरके उद्यानमें श्री विमलबोध नामके सूरि पृथ्वी पर विहार करते हुए आ पहुँचे और एक पवित्र स्थानमें रहे। सूरिके आगमन का हाल लोगों के मुँहसे सुनकर श्रीपेण राजा अपने परिवारके साथ उनकी वन्दना . करने को आये। वहाँ पहुँच कर, सूरिको प्रणाम कर, राजा एक उचित स्थान में जा बैठे। तदनन्तर सूरिने राजाको सुनाने केलिये धर्म-देशना प्रारम्भ की। "हे राजन् ! जो मनुष्य-जन्म आदि सामग्रियों को पाकर भी प्रमादके कारण धर्म नहीं करता, उसका जन्म निरर्थक ही जानना और जिन प्राणियोंने जिन-धर्मका अाराधन और सेवन कर, वैभव तथा मोन-सुख पा लिया है, उनका जन्म सार्थक समझना / वे मंगल-कलशकी भाँति सदा प्रशंसाके योग्य हैं / " . - यह सुन, श्रीपेणने पूछा,-स्वामिन् ! मंगल-कलश कौन था ? कृपाकर मुझे उसकी कथा सुनाइये। ___ सूरि महाराजने कहा,-"राजन् ! खूब मन लगा कर उसकी कथा मुनो, मैं तुम्हें उसकी कथा सुनाता हूँ / Sourcze dzisia.cz मङ्गल कलशकी कथा / KINARE जयिनी नामक विशाल नगरी में वैरसिंह नामक एक राजा राज्य उ करते थे। उनकी सोमचन्द्रा नामक स्त्री उन्हें प्राणोंसे भी बढ़कर प्यारी थी। उसी नगरी में धनदत्त नामका एक बड़ा भारी संठ . रहता था, / वह बड़ा ही विनयी, सत्य- वादी, दयावान्, गुरु तथा देवताकी पूजामें तत्पर और परोपकारी मनुष्य था। उसके सत्यभामा नामकी एक स्वी थी। वह बड़ी ही शीलवती तथा पति पर. प्रेम रखनेवाली थी, पर बेचारीकी गोद सूनी थी। एक दिन पुत्रकी चिन्तासे उदास बने हुए सेउको. देखकर उसकी स्त्री ने पूछा,-"नाथ !. आप आज . इतने दुःखी क्यों दिखाई देते हैं ?" . सेठने सच बात बतला दी, वह सुन कर स्त्रीने कहा, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust