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________________ प्रथम प्रस्ताव।... यह किसी नीच जातिकी सन्तान है। इसके बाद, कपिलने अपने पिताको कुछ धन देकर बिदा कर दिया और वह अपने घर चला गया। इधर, सत्यभामा ने कपिलकि ओरसे अपना मन फेर लिया और उसके अनजानते में घरसे बाहर ही, श्रीषेण राजाके पास जा, दोनों हाथ जोडकर बोली, आप पृथ्वीनाथ हैं- पांचवें लोक-पाल हैं-दीन और अनाथ मनुष्योंको शरण देने वाले हैं, श्रापही सबकी गति हैं, इसलिये मेरे ऊपर दया कीजिये।" ....... . उसका वचन सुन, राजाने कहा,-"पुत्री! तुम्हारे पिता सत्यकि मेरे पुज्य हैं / तुम उनकी पुत्री और कपिलकी पत्नी हो, इसलिये मेरी हर : तरहसे माननीया हो / तुम शीघ्र बतलाओ, तुमको कौनसा दुःख है ? "... .. वह बोली, "हे राजन् ! मेरा कपिल नामका जो स्वामी है, वह अच्छे कुलमें उत्पन्न नहीं होनेके कारण निन्दनीय है / " ...... ..... राजाने पूछा,-"तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ ?" .... . . यह सुन, उसने कपिलके पिताकी कही हुई कुल बातें राजाको कह मुनायी / अन्तमें बोली,-" महाराज ! आप ऐसा करें, जिसमें मैं इसके. घर से अलग हो जाऊँ और पृथक् रहती हुई भी निर्मल शीलका पालन कर सकें / मैं आपकी शरणमें आई हूँ।" उसने ऐसा कहने पर राजाने कपिल को बुलवा भेजा और आने पर उससे कहा,-"कपिल ! तेरी स्त्री सत्यभामा तेरे ऊपर प्रीति नहीं रखती, इस लिये तू इस स्नेह हीन स्त्री को छोड़ दे / आज से यह अपने पितृ गृहकी भाँति मेरे ही घरमें रहे और शील-रूपी अलंकार को धारण कर, कुलोचित धर्मोका पालन करती रहे, इस बातकी इसे आज्ञा दे डाल / " .. राजाकी यह बात सुन, कपिलने कहा,-"स्वामी ! मुझसे तो इसके बिना घड़ी भर भी चैन नहीं पानेका, मैं इसे छोड़कर रह नहीं सकता; फिर भला आप ही बतलाइये, मैं इसे कैसे छोड दे सकता हूँ?" . कपिलकी बातें सुन, राजाने सत्यभामासे पूछा-"भद्रे ! यदि कपिल तुझे छोड़नेको तैयार नहीं हो, तो तू क्या करेगी ?" . ___वह बोली,-"यदि इस नीच कुलोत्पन्न पुरुषसे मेरा पिण्ड नहीं छटा तो मैं अवश्य प्राण दे दूंगी।" यह सुन, राजाने फिर एक बार कपिलसे कहा,-"कपिल ! यदि तू इस स्त्री को न छोड़ेगा, तो तुझे अवश्य ही स्त्री हत्याका पाप लगेगा / क्या तुझे इस पाप का भय नहीं है ? इसलिये यदि तुझे स्वीकार हो, तो जैसे कुछ दिनोंके लिए स्त्रियाँ मायके चली जाती हैं, वैसे ही इसे भी कुछ दिन मेरे घर मेरी रानीके पास रहने दे।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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