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________________ श्रीशान्तिनाथ-चरित्र एक दिन रातको देवकुलमें नाटक देखने गया। वहाँ नाटक और संगीतका आनन्द लेते हुए बडी रात बीत गयी। नाटक समाप्त होने पर सब लोग अपनेअपने घर चले गये। कपिल भी अपने घर की तरफ चला। रात्रिका समय था, तिसपर बादलोंके मारे और भी गाढी अँधियारी छायी हुई थी और पानी बरस रहा था। इसी लिये रास्तेमें कोई आता-जाता नहीं नजर आता था / कपिलने सोचा- मैं व्यर्थ ही अपने वस्त्रको क्यों भिगाऊँ ! रास्तेमें तो कोई आदमी चलता-फिरता नहीं दिखाई देता ? यही सोचकर उसने अपने सारे कपडे उतार कर उनकी पोटली बाँध ली और उसे काँख तले दबाये नंगा ही अपने घर पहुँचा। द्वार पर आते ही उसने अपने कपड़े पहन लिये और तब घरके अन्दर घुसा / उसकी स्त्रि झट पट घरके अन्दरसे अन्य सूखे वस्त्रा लाकर बोली "प्राणेश" ! अपने भीगे कपडे उतार डालो और इन सूखे वस्त्रोंको पहन लो.।" यह सुन, कपिलने कहा,-"प्रिये ! मन्त्रके प्रभावसे इस वरसातमें भी मेरे कपड़े नहीं भीगने पाये। यदि तुम्हें सन्देह हो तो देखकर परीक्षा कर लो।" यह सुन, वह बडे आश्चर्यमें पड़ी और हाथ बढ़ाकर कपडोंकी परीक्षा कर, उन्हें सूखा देख, मनही मन अचम्भित हो ही रही थी, इसी समय बिजली.. चमक उठी / उसके उँजियाले में यह देख कर कि, उसकी देह तो पानीसे तर है, वह सूक्ष्मबुद्धिवाली सत्यभामा मनमें विचार करने लगी,- "अब समझी। यह वर्षाके भयसे वस्त्रोंको छिपाये हुए रास्ते भर नंगा ही आया है और अब मुझसे व्यर्थ की डिंग हॉक रहा है। भला यह हरकत कहीं भलेमानसोंकी हो सकती है ? यह कदापि कुलीन नहीं है। इसके साथ गृह-धर्मका पालन करना विडम्बना मात्र है। ऐसा विचार मनमें उत्पन्न होते ही कपिल पर उसका अनुराग कम हो गया। हाँ, लोक-दिखावे के लिये वह गृहस्थीके. काम-धन्धोंको सदाकी तरह करती रही। ___ इसी समय कपिलका पिता, जो ब्राह्मण और बड़ा भारी पंडित था, कर्मके. दोषसे, समय के फेरसे, निर्धन हो गया। उसने जब सुना, कि उसका कपिल नामक पुत्र रत्नपुरमें जाकर बड़ा वैभवशाली और लोक समाजमें माननीय हो रहा है, तब वह धनकी इच्छासे रत्नपुर आ पहुँचा और कपिलके घरपर अतिथिकी भाँति ठहरा / भोजनके समय कपिल किसी बहानेसे पितासे अलग जा बैठा। यह देख सत्यभामाके मनकी शंका और भी प्रबल हो गयी। उसने ब्राह्मणको एकान्तमें ले जाकर शपथ देते हुए पूछा, "पिताजी ! सच कहिये, यह आपका पुत्र आपकी धर्म-पत्नीसे उत्पन्न है या नहीं ? इसपर उपाध्यायने उससे सारा कच्चा चिट्ठा कह सुनाया, यह सुनकर उसे यह निश्चय हो गया, कि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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