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________________ : प्रथम प्रस्ताव। .. ran.............amannaahanam........................... थे। एकका नाम नन्दीभूति और दूसरेंका नाम शिवभूति था। वे जब पाँच / वर्ष के थे, तभीसे उनके पिताने बड़े यत्न से उन्हें वेदशास्त्रोंकी शिक्षा देनी आरम्भ की। उस ब्राह्मणके कपिला नामकी एक दासी थी। उसके पुत्रका नाम कपिल था / वह लड़का भी उसी ब्राह्मणके वीर्यसे उत्पन्न हुआ था; परन्तु जातिहीन होनेके कारण कहीं वह बड़ा बुद्धिमान न हो जाये, इसी लिये वह ब्राह्मण उसे पढ़ाता लिखाता नहीं था। परन्तु कपिल केवल सुनते ही . सुनते चौदहों विद्याओं में निपुण हो गया। जातिहीन होनेके कारण जब उस गाँवमें उस वेचारेका मान नहीं हुआ, तब वह घर छोड़कर बाहर चला गया और जनेऊ पहन अपनेको महा ब्रह्मण बतलाता हुआ वह ब्राह्मणों की सीं क्रियायें करने में कुशल और वेद-वेदांगमें निपुण कपिल पृथ्वी-पर्यटन करता हुआ श्रीरत्नपुर नगरमें आ पहुँचा। उस नगर में सत्यकि नामक एक बड़े भारी . पण्डित रहते थे, जो अपनी पाठशालामें बहुतसे छात्रोंको वेदशास्त्रकी शिक्षा देते / थे। कपिल वहीं आ पहूँचा। पण्डितको विद्यार्थीयोंको पढ़ाते हुए देखकर ... उसने सोचा, कि बस अपनी योग्यता प्रगट करनेका यही सबसे अच्छा अवसर है। यही सोचकर उसने एक विद्यार्थीसे वेदके किसी पदका अर्थ पूछा / यह देख सत्यकिने अपने मनमें विचार किया-यह तो कोई बड़ा भारी पण्डित मालम पडता है ; क्योंकि इसने जो बात पूछी है; वह तो मुझे भी नहीं मालूम फिर मेरा विद्यार्थी कैसे बतला सकेगा? ऐसा विचार कर उसमें उत्कृष्ट विद्यागुण देख तथा स्नान, दान; तथा गायत्री जाप आदि ब्राह्मणोंके कर्ममें उसे निपुण पाकर; पण्डितने उसे अपनी जगह पर बहाल कर लिया। भला. गुण किंसका मन मोह नहीं लेता ? वह सबको बरबस अपनी ओर अांकर्पित कर . लेता है, उससे सबका मनोरञ्जन हो जाता है। ___उस सात्यकि पण्डितकी स्त्रीका नाम जम्बूका था। उनके एक लड़की भी थी, जिसका नाम सत्यभामा था। वह बड़ी ही रूपवती और गुणवती थी। अभीतक उसका विवाह नहीं हुआ था। इसी लिये उपाध्यायने अपने मनमें विचार किया, कि मेरी पुत्रीके योग्य यह वर है। ऐसा विचार कर उपाध्यायने उसीके साथ अपनी कन्याका विवाह कर दिया। उसके साथ क्रिड़ा करता और विषय-सुख भोग करता हुआ कपिल * बड़े अानन्दसे रहने लगा। उपाध्यायजी उसका सम्मान करते थे, इस लिये वहाँके सभी लोग .. कपिलका सत्कार करने लगे। विद्वानोंकी सभामें भी उसने बड़ा मान-अादर पाया और राजसभामें भी उसकी प्रसिद्धी हो गयी। . .... दुष्कालका नाश करने वाली वर्षा-ऋतुका समय था। उन्हीं दिनों कपिल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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