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________________ श्रीशान्तिनाथ-चरित्र। चारत्र। mmmmmmmmmmmmm जिनेश्वरों को भी समकित प्राप्तिके समय से ही भवकी संख्या मानी जाती है। इस प्रकार श्री शान्तिनाथ जिनेश्वर के बारह भव हुए हैं। उनमें से पहले - भव की कथा इस प्रकार है इस जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में अनन्त रत्नों की खान के सदृश श्रीरत्नपुर नामका एक नगर था। उसमें श्रीषेण नामके एक राजा रहते थे। वे न्याय धर्म में निपुण, परोपकार करने में तत्पर, प्रजा का पालन करने में चतुर, शत्रुरूपी वृक्षों को उखाड फेंकनेमें हस्ती के समान और प्रौदार्य, धैर्य, गाम्भीर्य श्रादि गुणोंके आधार थे। उनके बाँये अंग की अधिकारिणी और शील रूपी अलंकार से भूर्पित दो स्त्रियाँ थीं। पहली का नाम अभिनन्दिता और दूसरी का नाम सिंहनन्दिता था। एक समय की बात है, कि पहली रानी ऋतुस्नान कर, रात के समय अपनी सुख शय्या पर सो रही थी। इसी समय उसने सपना देखा कि, किरणों से शोभित सूर्य और चन्द्रमा, अन्धकार को दूर करते हुए, उसकी गोद में बैठे हुए हैं। यह देखते ही रानी की नींद टूट गयी उसने अपने मनमें बडा हर्ष माना। इसके बाद वह श्राप ही प्राप विचार करने लगी,-"शास्त्रकारों ने कहा है, कि शुभ स्वप्न देखकर किसी से कहना नहीं चाहिये और फिर सोना भी नहीं चाहिये / " इत्यादि / इस प्रकार सोच-विचार कर वह रात भर जगी ही रही। सवेरा होते ही उसने अपने इस स्वप्नकी बात अपने स्वामी से कही। यह सुन, राजा ने अपनी बुद्धि और शास्त्र की दृष्टिसे विचार कर इस स्वप्न का फल अपनी प्यारी पत्नी को इस प्रकार प्रसन्नता भर वचनों में कह सुनाया। "हे देवी! इस स्वप्न के प्रभाव से तुम्हारे दो पुत्र होंगे. जो पृथ्वी भरमें प्रसिद्ध और कुल का नाम ऊँचा करने वाले होंगे।" यह सुन रानी बड़ी हर्षित हुई। इसके बाद ही वह गर्भवती हुई और उसके मुखड़े पर शोभा बरसने लगी। गर्भका समय पूरा होने पर सुन्दर लग्न-नक्षत्र में उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए। पिता ने दस दिनों तक बडी धूमधाम से महोत्सव मनाया। इसके बाद उन्होंने एक का नाम इन्दुषेण और दूसरे का बिन्दुषेण रक्खा / भलीभाँति लालित-पालित होते हुए वे दोनों राजकुमार बड़े होने लगे। क्रमशः वे आठ वर्ष के हुए। अब राजाने उन्हें कलाचार्य के पास शिक्षा निमित्त भेज दिया। वहाँ उन्होंने सब कलाओं की शिक्षा पायी / धीरे-धीरे वे युवा हो चले / उन दिनों भरत-क्षेत्रके मगध नामक प्रदेशमें अचल नामका एक ग्राम था, जिसमें वेद और वेदांगोंमें निपुण 'धरणिजट' नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नीका नाम यशोभद्रा था, जिसके गर्भसे उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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