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________________ sale 3 SEE | श्रीशान्तिनाथ-चरित्र / . 5 . श्रीशान्तिनाथाय नमः C प्रथम प्रस्ताव प्रणिपत्याईतः सर्वान् , वाग्दवीं सदगुरूनपि / गद्यबन्धेन वक्ष्यामि, श्रीशान्तिचरितं मुदा // 1 // "समस्त अरिहन्तो, सरस्वती देवी तथा सद्गुरुत्रों को प्रणाम कर, मैं बड़े हर्ष के साथ इस श्री शान्तिनाथ-चरित्र की पद्यात्मक रचना करता हूँ। ___ सारे संसार के जीव, अनन्तकाल से वारम्बार भव भ्रमण करते चले आते है; परन्तु जो प्राणी जिस समय क्षायिक समकितछ प्राप्त करता है, उसको उसी समय भव की संख्या प्राप्त होती है। जैसे, श्री ऋषभदेव स्वामी ने धनसार्थवाह के भव में श्रेष्ठ तप करने के कारण निर्मल शरीर वाले, पवित्र चारित्र पालन करने वाले, उत्तम पात्र रूपी मुनियों को बहुतसा घी दान किया था। उसी दान-पुण्य के प्रभाव से उस भव में तीर्थंकर नाम-कर्म उपार्जन कीया। (यह भव पश्चाद्नुपूर्वी गणना करने से तेरहवाँ ठहरता है / ) इसी प्रकार अन्यान्य * क्षयोपशम अथवा उपशम समकित प्राप्त होनेके बाद से भवकी गिनती होती है। इस जगह क्षायिक कहा हुआ है सो विचारने योग्य है / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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