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________________ - चतुर्थ प्रस्ताव। . और सकुशल अपने नगरमें आ पहुँचा। इसके बाद उसने बड़ी धूमधामके साथ अपने नगरमें प्रवेश किया और अपने उपार्जन किये हुए धनमेंसे / सत्पात्रोंको दानकर बहुतसे दीनोंका उद्धार किया। बहुतसे पुण्य स्थानोंकी मरम्मत करा, जिन-चैत्य बनवा, उनमें प्रतिमाओंकी स्थापना कर, तथा ऐसे हो अन्यान्य सैकड़ों सत्कर्म करके उसने अपने मनोवाञ्छित समस्त सुखोंको भोगना आरम्भ किया। एक दिन वहाँ क्रमशः विहार करते हुए कोई सूरि महाराज आ पधारे। उसी समय सेठ धनदस्त उनके पास जा पहुंचा और उनसे धर्मकी बातें सुन, वैराग्य पाकर, चारित्र ग्रहण कर लिया। इसके बाद उग्र तपस्या करके अपने समस्त कर्मोका क्षय कर, उसने क्रमशः आपत्तिरहित मोक्ष-पद प्राप्त किया। इधर उपर्युक्त राजाने आम्रफलको हाथमें लेकर विचार किया,"इस एक ही आमके फलमें भला क्या गुण होगा ? इस लिये यदि मैं इसके बहुतसे फल पैदा कराऊँ, तो बहुतोंका उपकार भी हो और बहुतसा गुण भी हो।” ऐसा विचार कर राजाने अपने सेवकोंसे कहा,"इस आमको किसी अच्छे स्थान में ले जाकर बोओ। जिसमें खूब बड़ा आमका पेड़ लगे, ऐसा करो।" सेवकोंने उस फलको मनोरम नामक बाग़में ले जाकर बो दिया और उसके चारों तरफ़ आल-बाल बना कर नित्य उसे पानीसे सींचने लगे। कुछ दिनों बाद उसका अङ्कर निकला। यह समाचार सुनकर राजाको बड़ी खुशी हुई। समय पाकर उस वृक्षमें मोजरें लगों और फल भी फले। तब राजाने रखवालोंको इनाम . देकर कहा, कि तुम लोग उस वृक्षकी खूब यत्नके साथ रक्षा करो। रखवाले रात-दिन वहीं रहते हुए उस पेड़की रखवाली करने लगे एक . दिन दैवयोगसे उसका एक फल रातके समय आपसे आप टूट कर गिर पड़ा। रक्षकोंने सवेरा होतेही वह पका हुआ फल गिरा देखा और तत्काल उसे लिये हुए राजाके पास पहुँचे। राजाने उसे देखकर सोचा,-"यह नया फल किसी अच्छे सुपात्रको देना चाहिये। ऐसा विचार कर, उसने चारों वेदोंके जाननेवाले देवशर्मा नामके एक ब्राह्मण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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