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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। सुनकर राजाने सन्तुष्ट होकर उसका सारा कर माफ़ कर दिया / 'श्रीमानकी मेरे ऊपर अपार दया है', कहता हुआ सेठ अपने जहाज़ पर चला आया / इसके बाद अपने जहाजके कुल सामान बेंच, नये सामानों-र ले जहाज़ भर वह फिर समुद्रकी राह उसी गम्भीर नगरमें आ पहुँचा, जो कादम्बरी नामकी अटवीमें बसा हुआ था। वहीं वह सेठ सब लोगोंके साथ ठहर गया। रातके समय काफ़िलेवाले व्यापारी मालको चारों ओरसे धेरकर सोये और एक-एक पहर की बारीसे जागते हुए पहरा देने लगे। रातके पिछले पहर. 'मारो-मारो' की आवाज़ लगाते हुए भीलोंने उनपर अकस्मात् धावा बोल दिया। उस समय सार्थवाह भी बख्तर पहने वीरोंको साथ लिये हुए, उनसे लड़नेको तैयार हो. गया। इसी समय सार्थेशके भाटने कहा,-- "हे स्थिरचित्तवाले धनदत्त! तुम्हारी जय हो।" इसी समय भीलोंके सरदारने भाटके मुँहसे अपने पूर्वके उपकारी धनदत्तका नाम सुन, मन-ही-मन शङ्कित . होकर, सब भीलोंको लड़ाई करनेसे रोक दिया और अपने हथियार नीचे डाल कर सार्थवाहसे मिलने आया। धनदत्तने भी उसे पहचानकर बड़ी खातिरके साथ कहा, - “हे कृतज्ञ-शिरोमणि! कहो, कुशलसे हो न ?" अब तो दोनों एक दूसरेके गले-गले मिले और एक साथ एकही आसन. पर बैठ रहे। सार्थवाहने उसे पान वगैरह देकर सम्मानित किया। इसके बाद जब सार्थेशने उससे क्षेम-कुशल पूँछा, तब वह बार-बार अपनेको धिक्कार देता हुआ बोला,-"ओह ! मैं अनजानतेमें कैसा बुरा काम करने जा रहा था ! मेरा अपराध क्षमा कीजिये और कृपाकर मेरे गाँवको चलिये।" यह कह, वह बड़े आग्रहके साथ सार्थवाहको सारे काफ़िलेके साथ अपने गांवमें ले आया। अनन्तर उसे अपने घरमें ले जाकर उसने सबको नहलाया-धुलाया,खिलाया-पिलाया और वस्त्रादिसे सम्मानितकर, मोती और हाथी-दाँतकी बनी अच्छी-अच्छी चीज़ोंको भेंट देकर सेठका भली भांति सत्कार किया। सेठने भी उसे प्रेमभरे वचनोंसे सन्तुष्ट कर, उसकी दी हुई चीजें ले, उससे विदा मांगकर प्रस्थान किया P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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